भारतको क्षात्रतेजसम्पन्न सम्प्रदायविद् प्रजापालक राजा प्राप्त हो !
युद्धस्य अर्थः
श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः
श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥
"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय, शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"
धन, मान,
प्राण, परिजन को
हथेली पर लेकर दोनों पक्ष आमने-सामने होता है।
दुर्योधन भी युद्ध के मोर्चे पर था या नहीं?
एअर कंडिशनड कमरे में बैठा हुआ था क्या?
हमारी युद्ध की परम्परा देखिए।
रावण भी युद्ध के मोर्चे पर,
तो रामभद्र भी युद्ध के मोर्चे पर
— जाके पाँव ना फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई!
ये रक्षामंत्री गृहमंत्री आदि क्या जाने सैनिकों की दशा,
जो लुंजपुंज हो जाते हैं, मार दिए जाते हैं।
जिनका आँसू पोछने वाला परिवार का कोई नहीं रहता है।
सत्यमेव जयते नानृतम्। सत्यमेव जयते नानृतम्।।
जिसके सत्य का बल होता है वो अंत में विजयी होता है।।
जीवनमें जो रिस्क नहीं उठाता वो असफल बना रहता है, अत्यन्त दुर्बल सिद्ध होता है, ठीक है। तमोगुणी व्यक्ति भी, प्रबल क्यों हो जाता है ? रिस्क उठाकर काम करता है — जैसे सिकन्दर आदि। इतिहास उनका भी बनता है। ये बीच वाले जो हैं, इनका कोई इतिहास नहीं बनता। या इस पार या उस पार — जो रिस्क नहीं लेना जानते न। कौन विरोध मोल ले? कौन चक्कलसमें पड़े? संघर्षका रास्ता ही मत पालो — भोजन करो, ये करो, वो करो, बड़ी विचित्र बात है। स्वास्थ्य, सुख और शान्तिको ही जो पकड़कर रखते हैं — उनका इतिहास बन पाता है क्या? सिद्धान्तकी रक्षाके लिए अगर स्वास्थ्य, शान्ति और सुखको भी खोना पड़े, तो तैयार रहिए।।
एक करोड़ कैकेयीकी कठोरता होती है तो कोई राजनेता बनता है। अरे ! राम रे राम ! सबको मरवाके भी ये सेनाको कटवा दें, मरवा दें, राष्ट्रको मरवा दें कटवा दें ; देश को लुटवा दें। बिलकुल दयाविहीन एक करोड़ कैकेयीकी कठोरता हो, तब कोई राजनेता बनता है आजकल भारतमें ! उसकी कठोरताका अन्त नहीं, झूठ-मूठके सौदे कर लेते हैं – जरा फ़ायरिंग कर देना, अब चुनावका समय आना है। पाकिस्तानको संकेत कर देते हैं, तो राष्ट्रका ध्यान युद्धमें चला जाएगा। क्या हाँ युद्ध भी करवा देते हैं, सन्धि भी करवा लेते हैं — इन लोगोंके बाएँ हाथका खेल होता है। जब देशमें ज्यादा समस्या बढ़ती है तो लोगोंका ध्यान बटवानेके लिए पड़ोसी राष्ट्रको कहते हैं थोड़ा आक्रमण तो कर दो। ये सब भी चलता है, सब गड़बड़-सड़बड़ चलता है। राष्ट्रको लूटकरके विदेशमें फेक आते हैं सोना-चाँदी।।
हमारे सैनिक युद्ध जीतते हैं और एसी – वातानुकूलित कक्षमें रहकर राजनेता समझौता करके उनके बलिदान पर पानी फेर देते हैं। न चाहते हुए भी लाल बहादुर शास्त्रीजीने भी यही किया — ताशकंद वार्ता। अपने प्राणोंको हथेली पर रखकर हमारे देशभक्त योद्धा जूझते हैं, लेकिन दो घंटेकी वार्ताके ब्याजसे राजनेता उनके बलिदान पर पानी फेर देते हैं। समझ गए ? वाजपेयीजीको मैंने सावधान किया था, सात महीने पहले जम्मू-कश्मीर आदि क्षेत्रकी यात्रा करके और मैंने घोषणा कर दी थी पटनामें और भुवनेश्वरमें — पाकिस्तान आक्रमण करने वाला है। हमारी बात अनसुनी की गई ; सात महीने बाद कारगिल युद्ध हुआ। जान बूझकर सैनिकोंको गाजर-मूली की तरह कटवानेका अभियान है।।