
धर्मस्य जयोस्तु अधर्मस्य नाशोस्तु
प्राणीषु सद्भावनास्तु विश्वस्य कल्याणमस्तु
गोमातु: जयोस्तु गोहत्याया: निरोधोस्तु
यति चूड़ामणि धर्म सम्राट स्वामी
श्री करपात्रीजी महाराजवर्यस्य जयोस्तु
धर्म की जय हो! अधर्म का नाश हो!
प्राणियों में सद्भावना हो! विश्व का कल्याण हो!
गौमाता की जय हो! गौहत्या बंद हो!
भारत अखंड हो! हर - हर - महादेव!

धर्मस्य हि जयो भूयादधर्मस्य पराजय:।
भूयात्प्राणीषु सद्भावो विश्वस्यास्य शिवं सदा।।
धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, इस विश्व का सदा ही कल्याण हो।।

गवां वै मंत्रमुर्त्तीणां पुनर्भूयाज्जयो जय:।
कलंको गोवधोद्भूत: प्रभो राष्ट्रादपैतु न:।।
मंत्रमूर्ति गोवंशकी पुन: जय हो, जय हो। हे प्रभो! हमारे राष्ट्र से गोवधसे समुत्पन्न कलंक दूर हो।।

भूयाद्भारतमस्माकमखण्डं धर्ममण्डितम।
स्वामिनां करपात्राणां वर्द्धतां धर्मसंहति:।।
हमारा भारत अखंड और धर्मसमन्वित हो। करपात्रस्वामीके द्वारा संस्थापित धर्मसंघ उत्कर्षको प्राप्त हो।।

शम्भो हरहरेत्युच्चैर्महादेवेति गर्जनम्।
सद्धर्मवतर्मपान्थानामस्माकं राजतांभुवि।।
उच्चस्वरसे शम्भो हर - हर महादेवका गर्जन हो। सनातनधर्ममार्गपर प्रयाण करनेवाले हमारे पथिक भूमण्डलपर सुशोभित हों।।

शुभं भूयाद्धि विश्वस्य प्राणिन: संतु निर्भया:।
धर्मवन्तश्च मोदन्तां ब्रह्मज्योति: समेधताम्।।
विश्वका कल्याण हो, प्राणी निर्भय हों तथा धर्मात्मा प्रमुदित हों, ब्रह्मजिज्ञासुओंके हृदयमें स्वप्रकाश ब्रह्मविज्ञान उद्दीप्त हो।।

परमानन्दसमुद्रोल्लासनिवासैकपूर्णिमाज्योत्स्ने
श्रीमत्करपात्रचरणसरसीरूहपादुके वन्दे।
संसृतिसागरनिपतल्लोकसमुद्धारकारणीभूते
श्रीमत्करपात्रचरणसरसीरूहपादुके वन्दे।।
परमानन्दरूप समुद्रके उल्लासपूर्णनिवासमें एकमात्र पूर्णचंद्रके प्रकाशसदृश श्रीमत्करपात्रमहाभागके युगलपादपद्मोंकी पादुकाओंकी मैं वंदना करता हूँ।।
जन्ममृत्युकी अनादिअजस्र परम्परारूप संसृतिसागरमें निमग्नहुए जीवोंके समुद्धार में हेतुभूता श्रीमत्करपात्रमहाभागके युगलपादपद्मोंकी पादुकाओंकी मैं वंदना करता हूँ।।
