वर्णव्यवस्थाकी उत्पत्ति कैसे हुई ?
“वर्णव्यवस्थाका आधार क्या है ? पुरुष सूक्त वेदोंमें है, उसमें विराट् पुरुषका हिरण्यगर्भका वर्णन है, ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् आदि वचन हैं। वर्णव्यवस्था अनादि कालसे है और जीवोंके भोग्यके लिए सृष्टि अनन्तकाल तक चलती रहेगी। जो जीव मुक्त होते जाएँगे, उनका पुनर्जन्म नहीं होगा। महासर्गके प्रारम्भमें भगवान जब हिरण्यगर्भ और विराट् (पुरुष) का रूप धारण करते हैं, उन्हींसे – उन्हीके अङ्ग-प्रत्यङ्गसे ही वर्णकी, आश्रमकी, छंदोंकी, वेदोंकी भी अभिव्यक्ति होती है।”
“श्रीमद्भागवत और महाभारत (हिन्दी अनुवाद सहित) गीताप्रेससे प्रकाशित हैं। पूरा महाभारत पढ़नेका समय नहीं हो सकता है; “शान्तिपर्व” और “अनुशासनपर्व” — दो पर्वमें विस्तारपूर्वक विराट् पुरुषके शरीरसे किसकी अभिव्यक्ति हुई। श्रीमद्भागवतके दूसरे और तीसरे स्कंधमें आपके प्रश्नका विस्तारपूर्वक उत्तर दिया गया है। वर्णाश्रमव्यवस्था वैदिक है, वेदोंकी अभिव्यक्ति और वर्ण-आश्रमकी अभिव्यक्ति भगवानसे ही हुई है — ये सब अनादि हैं। वेद भी अनादि, वर्णव्यवस्था भी अनादि और वर्णोचितकर्म भी अनादि ही हैं।”
— श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती महाराजके वक्तव्यसे दिनांक: २८ अप्रैल २०१९