वर्णव्यवस्थाके व्यत्यासके फलस्वरूप सम्भावित विप्लव

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श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


वर्णव्यवस्थाके व्यत्यासके फलस्वरूप सम्भावित विप्लव


सनातन वर्णव्यवस्थामें जन्मसे सबकी जीविका सुरक्षित है तथा वंशपरम्परागत जीविकोपार्जनकी दक्षतासे सम्पन्न जन्म भी जीविकोपार्जनमें उपयोगी है।”

नीति तथा अध्यात्मसमन्वित परम्पराप्राप्त शिक्षातन्त्रके अधीन शासनतन्त्र, शासनतन्त्र के अधीन वाणिज्यतन्त्र और सेवातन्त्र सर्वसुखप्रद है। जबकि श्रमिक – सेवकतन्त्रके अधीन वाणिज्यतन्त्र, वाणिज्यतन्त्रके अधीन शासनतन्त्र तथा शासनतन्त्रके अधीन शिक्षातन्त्रके कारण विप्लवपूर्ण वातावरण और विश्वयुद्धकी विभीषिका सुनिश्चित है। अतः वर्णव्यवस्थाके व्यत्यास (उलटफेर) के फलस्वरूप समप्राप्त तथा सम्भावित विप्लवको निरस्त करनेकी आवश्यकता है।”


— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या १३७-१३८

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