भोगापवर्गप्रदायक प्रकल्पका क्रियान्वयन
द्यूत, मद्य, हिंसादि, अनर्थपर्यवसायी अर्थ, मूर्च्छा और मृत्युपर्यवसायी काम; वर्णसंकरता तथा कर्मसंकरतामूलक धर्म और देहात्मभावित मोक्षकी गाथाने; तद्वत् वर्ण, वेष, विधि – निरपेक्ष कर्मकाण्ड, विवेक तथा वैराग्यनिरपेक्ष उपासनाकाण्ड, अहिंसा-सत्यादि-यमविरहित तथा शौचसन्तोषादि नियम – विरहित योग, विवेकवैराग्यादिनिरपेक्ष वेदान्त ; तद्वत् धर्मनिरपेक्ष शासनतन्त्रने पुरुषार्थविहीन मानवसमाजको प्रेय तथा श्रेय दोनोंसे वंचित बना दिया है।
जिन अर्थ और कामपर लट्टू होकर विश्वस्तरपर सामाजिक धरातलपर मनुष्योंने प्रबल बहुमतसे धर्म और मोक्षका परित्याग किया है, उन्हें मोक्षपर्यवसायी धर्मके बिना पुरुषार्थ बना पानेकी क्षमता न होनेके कारण पुरुषार्थविहीन मानवसमाजने स्वयंके और पृथिव्यादि पंचभूतोंके सहित अन्य प्राणियोंके विकृत तथा विलुप्त होनेका बानक बनाकर सबके हितपर पानी फेरनेका काम किया है।
उक्त हेतुओंसे वैदिक महर्षियोंके द्वारा चिर परीक्षित तथा प्रयुक्त भोगापवर्गप्रदायक प्रकल्पका क्रियान्वयन ही सर्वहितप्रद है।
दिव्य गन्धसमन्वित भूमण्डल, दिव्य रससमन्वित कूप – सरोवर – नद – निर्झर – शुद्ध सुविस्तृत सागर, दिव्य रूपसमन्वित तेज, दिव्य स्पर्शसमन्वित वायु, दिव्य शब्द समन्वित अनवरुद्ध अन्तरिक्ष (आकाश), शुद्ध ज्ञान – विज्ञान – गर्व – स्मरणसम्पन्न अन्त:करण, सुशिक्षित – सुसंस्कृत – सुरक्षित – सम्पन्न – सेवापरायण – स्वस्थ – सर्वहितमें प्रयुक्त तथा विनियुक्त जीवन सनातनसंस्कृतिका निसर्गसिद्ध उपहार है।
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती
द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या २४७-२४८