सनातन वर्णव्यवस्था

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥


सूर्यविहीन त्रिभुवनकी अन्धकारमयी स्थितिके तुल्य विश्वकी दयनीय स्थितिका एकमात्र कारण सनातन सामाजिक व्यवस्थाका विलोप है।।”

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “क्रान्तिबिन्दु” पृष्ठ संख्या

शिक्षा, रक्षा, अर्थ और सेवाको सन्तुलित रखनेका शाश्वतसिद्धान्त


“समाजमें शिक्षा, रक्षा, अर्थ और सेवाको सन्तुलित एवं सुव्यवस्थित रखनेके लिए हर व्यक्ति और वर्गकी जीविकाको सुरक्षित रखनेवाली सनातन वर्णव्यवस्था है। पूर्वकर्मानुरूप वर्तमान जन्म, जन्मनियन्त्रित वर्ण, वर्णनियन्त्रित आश्रम और वर्णाश्रम नियन्त्रित कर्मव्यवस्था सनातनधर्मकी अपूर्वता है। स्वाधिकारानुरूप कर्मसम्पादनसे सिद्धि, सुख और परांगतिकी निष्पन्नता वर्णाश्रमव्यवस्थाका फल है। वर्णाश्रम वह दार्शनिक और वैज्ञानिक व्यवस्था है, जहाँ हर व्यक्तिको सम्मान, सुविधा, और सुखद जीवन सुलभ है। समस्त भेदोंके मूलमें प्रतिष्ठित निर्भेदात्मतत्त्वके अधिगम और भेदोपयोगमें दक्षता वर्णाश्रमव्यवस्थाकी अनुपम अपूर्वता है।”

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीति और अध्यात्म” पृष्ठ संख्या ७९-८०

विद्या, बल, धन और सेवाबलमें परस्पर समन्वय


श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य

ब्राह्मणोंमें विद्या (सरस्वती)की, क्षत्रियोंमें सैन्य बल (शक्ति)की, वैश्योंमें धन (सम्पत्ति) और शूद्रोंमें सेवाकी प्रतिष्ठा होती है। विद्यासे नियन्त्रित और समन्वित बल, विद्या और बलसे नियन्त्रित और समन्वित धन तथा विद्या, बल और धनसे नियन्त्रित एवम् समन्वित सेवासे सर्वहित सुनिश्चित है।”

“जब विद्यापर बलका वर्चस्व होता है अर्थात् शिक्षातन्त्रमें प्रतिष्ठित विद्यापर शासनतन्त्रमें प्रतिष्ठित शक्तिका आधिपत्य होता है, तब समाजमें विप्लवका वातावरण छा जाता है। जब विद्या और बलपर व्यापारतन्त्रमें प्रतिष्ठित धन-सम्पत्तिका वर्चस्व होता है, तब समाजमें अति विप्लव होने लगता है। जब विद्या, बल, और धनपर श्रमिकवर्गमें सन्निहित सेवाका वर्चस्व (शासन) होता है, तब विश्व विनाशकी विभीषिकासे सन्तप्त होने लगता है।”


— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीति और अध्यात्म” पृष्ठ संख्या ३६

वर्णव्यवस्था के व्यत्यास के फलस्वरूप सम्भावित विप्लव


सनातन वर्णव्यवस्थामें जन्मसे सबकी जीविका सुरक्षित है तथा वंशपरम्परागत जीविकोपार्जनकी दक्षतासे सम्पन्न जन्म भी जीविकोपार्जनमें उपयोगी है।”

नीति तथा अध्यात्मसमन्वित परम्पराप्राप्त शिक्षातन्त्रके अधीन शासनतन्त्र, शासनतन्त्र के अधीन वाणिज्यतन्त्र और सेवातन्त्र सर्वसुखप्रद है। जबकि श्रमिक – सेवकतन्त्रके अधीन वाणिज्यतन्त्र, वाणिज्यतन्त्रके अधीन शासनतन्त्र तथा शासनतन्त्रके अधीन शिक्षातन्त्रके कारण विप्लवपूर्ण वातावरण और विश्वयुद्धकी विभीषिका सुनिश्चित है। अतः वर्णव्यवस्थाके व्यत्यास (उलटफेर) के फलस्वरूप समप्राप्त तथा सम्भावित विप्लवको निरस्त करनेकी आवश्यकता है।”


— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या १३७-१३८

नीतिनिधि पृष्ठ संख्या 106 से
नीतिनिधि पृष्ठ संख्या 109 से
पृष्ठ संख्या 132-134
135 – ब्राह्मणो पर ग़लत आक्षेप
138 – वर्णव्यवस्था का उलटफेर
520 – सुरक्षित जीविका, फलचौर्य