सनातन वैदिक ध्वज

‘एता देवसेना: सूर्यकेतव: सचेतस:।
अमित्रान् नो जयतु स्वाहा।।’
(अथर्ववेद ५. २१. १२)
‘अरूणै: केतुभि: सह।’
(अथर्ववेद ११. १२. २)
‘स्वस्त्यस्तु विश्वस्य’
(श्रीमद्भागवत ५. १८. ९)
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या १८
हे राष्ट्रध्वज वन्दन तेरा

हे राष्ट्रध्वज तेरा वन्दन।
हे वन्दनीय तेरा वन्दन।।
हे माननीय तेरा नन्दन।
हे मानबिन्दु तेरा रक्षण।।
हे शौर्यप्रदर्शक शक्तिस्वरूप।
हे मानरक्षक क्रान्तिरूप।।
हे सूर्य चन्द्र अरु अग्निरूप।
हे विद्युल्लेखा चक्ररूप।।
है त्रिकोणमध्य बालसूर्य।
तन्मध्यगत स्वस्तिक अपूर्व।।
केसरिया वस्त्र त्यागरूप।
वैदिकध्वज वैभवस्वरूप।।
हे श्रुति-स्मृति-पुराणस्वरूप।
हे युगप्रवर्तक रामरूप।।
हे दुर्गा – काली – सतीरूप।
सीता – सावित्री – शचीरूप।।
हे ब्रह्मा – विष्णु – महेशरूप।
हे आदित्य और गणेशरूप।।
हे शक्तिरूप सृष्टिस्वरूप।
हे सर्वेश्वर सच्चित्स्वरूप।।
हो आर्यधर्म – निर्वाहक तुम।
वैदिकताके वाहक तुम।।
हो हिन्दुधर्मके पालक तुम।
सत्यशील – उद्धारक तुम।।

“सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।”
(महाभारत – शान्तिपर्व ३२७. ४८)
“सब सङ्कटसे पार (दुर्गतिसे दूर) हों, सब सर्वविध कल्याणको प्राप्त हों।”
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सनातनधर्म-प्रश्नोत्तर-मालिका” पृष्ठ संख्या ३७०” और सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या १९-२०