सनातनसावित्री

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


।। श्रीहरि: ।।


सनातनसावित्री


(षट्श्लोकि)


समत्वं सत्यसंतोषौ तेज:सारल्यमेव च।
दया शुद्धिर्धृतिस्त्यागो विवेकोऽथ शमो दम:।।


अद्रोहानुग्रहौ दानात्मकं शीलं, तप:क्षमा।
गोरक्षा राष्ट्ररक्षा च यज्ञ: स्वास्तित्वरक्षणम्।।

कमल
स्वकीयादर्शरक्षाऽऽर्तत्राणमाचार्यसेवनम्।
मातृसेवा पितुश्चापि शुश्रूषाऽतिथिसत्कृति:।।


स्वाध्यायोऽध्यात्मसंवित्ति: सर्वत्रात्माऽवलोकनम्।
अभयं भगवद्भक्त्तिरीति द्वात्रिंशदात्मक:।।

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धर्म: सनातन: सोऽयं सार्वभौमो विराजते।
श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त्त: सद्भिराचरित: शुभ:।।


इमां सनातनप्रख्यां सावित्रीं यः स्मरेत्सदा।
निश्चलानन्दसम्पुष्ट: सनयं विनयं भजेत्।।


— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीति और अध्यात्म” पृष्ठ संख्या १६२

सनातनसावित्री


कमल

सत्य, समता, सन्तोष, सरलता, तेज, दया, विवेक, त्याग, शुद्धि, धृति, क्षमा, शम (मनोनिग्रह), दम (इन्द्रियनिग्रह), यज्ञ तथा अद्रोहअनुग्रह और दानरूप शील, तप, राष्ट्ररक्षा, अस्तित्वरक्षा, आदर्शरक्षा, गोरक्षा, आर्तसेवा, मातृसेवा, पितृसेवा, आचार्यसेवा, अतिथिसत्कार, स्वाध्याय, ईशभक्ति, आत्मज्ञान, सर्वात्मभाव और अभय — ये बत्तीस श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त और सत्पुरुषोंद्वारा आचरित शुभ सार्वभौम सनातनधर्म हैं।”

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीति और अध्यात्म” पृष्ठ संख्या १६२