एकछत्रवाद नहीं राजतन्त्र

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


एकछत्रवाद नहीं राजतन्त्र


क्षात्रधर्म (राजधर्म) की जड़ें सनातन वैदिक वर्णाश्रमव्यवस्था में हैं, और वर्णव्यवस्थामें सब वर्णोंको उचित अधिकार प्राप्त है। सनातनधर्म (सनातन वर्णव्यवस्था) के अनुसार केवल क्षत्रियोंको ही शासन करनेका अधिकार है, पर उनका शासन धर्मके अधीन है। राजनीतिकी सभी व्यवस्थाओंमें सनातन वर्णव्यवस्था पर आधारित क्षात्रधर्म सर्वश्रेष्ठ है। भारत हिन्दूराष्ट्र तभी बन सकता है यदि भारतमें क्षात्रधर्म पर आधारित शासन का मॉडल (अर्थात् राजतन्त्र) अपनाया जाएँ।

तदेतत् क्षत्रस्य क्षत्रं यद्धर्म:


धर्म ही क्षत्रिय (राजा)
का सबसे बड़ा क्षत्र (शक्ति) है।


आदर्श राजा

धर्म राजाओंका भी राजा है। धार्मिक राजा ही राज्य और प्रजाका सम्यक् रक्षण और पालन करनेमें समर्थ सिद्ध होता है। सदाचार, संयम और सद्भावसम्पन्न धर्म, नीति और अध्यात्मका मर्मज्ञ राजा इन्द्रसदृश पराक्रमी और अपराजित होता है।
(बृहदारण्यकोपनिषत् १. ४. १४)

सत्मेवानृशंसं च राजवृत्तं सनातनम्।
तस्मात् सत्यात्मकं राज्यं
सत्ये लोक: प्रतिष्ठित:।।

(वाल्मीकीय रामायण – अयोध्याकाण्ड १०९. १०)

सत्य ही राजाओंकी अक्रूरतापूर्ण सनातन आचारसंहिता है; अंतः राज्य सत्यात्मक है। सत्यमें ही सम्पूर्ण लोक प्रतिष्ठित है।।”

व्यासपीठ: शासनतन्त्र: च मध्ये परस्परं नियन्त्रणं भवेत्


व्यासपीठ और शासनतन्त्र पर एक-दूसरेका अंकुश न होने से भटकाव की संभावना बनी रहती है। ऐसे में संतुलन बनाए रखने को शासनतन्त्र और व्यासपीठ पर एक-दूसरेका अंकुश होना चाहिए। राजा मार्गसे भटके तो व्यासपीठ मार्गदर्शन कर उसे रास्ता दिखाए। वहीं व्यासपीठ धर्मसे डिगे तो शासनतन्त्र सुधार करे। इसमें व्यासपीठकी महत्ता अधिक है।”

“प्राचीन समयसे सत्ताके संचालन में राजगुरु की अहम भूमिका होती थी। किसी भी निर्णयसे पहले उनकी राय ली जाती थी, उनकाही फैसला अंतिम होता था। भटकाव की स्थितिमें राजा भी प्रायश्चितका भागी बनता था। बचपनसे ही गुरुओंके सानिध्यमें रख कर भावी राजाको नैतिकता, निर्णय व आत्मसंयम समेत सभी गुणों का पाठ पढ़ाया जाता था। वहीं व्यासपीठसे इतर हो शासनतन्त्र अपयश के भागी व पतनोन्मुख हुए। महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मार्गदर्शन कर राह दिखायी और गुरु की महती भूमिका का निर्वाह किया।।”

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामीश्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजीके वक्तव्यसे;
स्थान: अयोध्या, दिनांक: २२ अक्तूबर २०१६

राजतन्त्रमें एकछत्रवाद नहीं होता


बहुत छानबीन करनेपर आप पाएँगे कि मुख्यरूपसे दो ही राजनैतिक दल हैं, उससे अधिक नहीं हैं। गुप्त या प्रकट, बहुतसे ऐसे दल बहुत हैं जो कांग्रेसके समर्थक हैं और बहुतसे ऐसे दल हैं जो भाजपाके समर्थक हैं। इसलिए बाहरसे लगता है कि बहुतसे राजनैतिक दल भारतमें हैं लेकिन विलय, विनियोग और समर्थनकी दृष्टिसे विचार करें तो आज भी भारतमें दो ही दल हैं। कॉम्युनिस्ट इत्यादि कांग्रेससे मिले हुए होते ही हैं, आज भी हैं ; और जितना विदेशी तन्त्र है वो कांग्रेसके साथ होता ही है — विशेषकर क्रिश्चनतन्त्र आजकल कांग्रेसके साथ ही है। कॉम्युनिस्ट तन्त्र भी विशेषकर आजकल कांग्रेसके साथ ही है।

Rajshahi

आप अगर भारतके लिए कुछ करना ही चाहते हैं और बहुत कुछ करना चाहते हैं तो यह क्यों नहीं आप कहते कि ब्रिटेनमें अंग्रेजोंके यहाँ परम्पराप्राप्त कोई क्षत्रिय नहीं है — लेकिन वैकल्पिक राजतन्त्रको उन्होंने इस रोकेट – कम्प्यूटर – एटम – मोबाइलके युगमें भी सुरक्षित रखा है, हमारी अनुकृति है या नहीं। इक्कीसवी शताब्दीमें अगर ब्रिटेन राजतन्त्रको सुरक्षित रख सकता है तो भारतके मस्तिष्कमें क्या बीमारी है कि वो राजतन्त्र (परम्पराप्राप्त) सुरक्षित नहीं रख सकता।
British Coat of Arms
दूसरी बात है कि उनके यहाँ कोई परम्पराप्राप्त ब्राह्मण नहीं है, लेकिन पोपकी गद्दी उनके यहाँ सुरक्षित है। जिस शहरमें पोप रहते हैं — वेटिकन सिटी — उसको राष्ट्रकी मान्यता प्राप्त है। पोप महोदय केवल क्रिश्चनतन्त्रके गुरु ही नहीं बल्कि राष्ट्राध्यक्ष, राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष भी होते हैं। यह भगवान शङ्कराचार्यकी अनुकृति है — आदि शङ्कराचार्य महाभागने पूरे विश्वको एक सूत्रमें बाँधनेके लिए चार धार्मिक राजधानियाँ बनाईं थी। वहाँके शङ्कराचार्य एक बटा चार विश्वके शासकों पर शासक नियुक्त किए गए थे।
Vatican Emblem
तो जब ब्रिटेन गुरुपरम्पराको सुरक्षित रखनेमें समर्थ है, राजपरम्पराको सुरक्षित रखनेमें समर्थ है, तो भारतको क्या बीमारी हो गई कि वो सुरक्षित नहीं रख सकता। अगर आपको काम करना है तो इधर कीजिए। मैं एक संकेत करता हूँ — एलिजबेथ या एलिजाबेथ, विक्टोरियासे अधिक समयसे शासन कर रही है या नहीं ? और बहोतोंको भ्रम है कि राजतन्त्रमें डिक्टेटरशिप (एकछत्रवाद) का सन्निवेश होता था — बिलकुल ये भ्रम है।

Mahabharat

इसलिए महाभारतका अध्ययन कीजिए — शान्तिपर्वके अनुसार — मन्त्रीमण्डलमें रेशियो या अनुपातका ज्ञान होगा। चार ब्राह्मण होना चाहिए मन्त्रीमण्डलमें, किस अभिप्राय से ? शिक्षाविद् हो, न्यायविद् हो, शासनतन्त्रको सही दिशा देनेमें समर्थ हो। आठ क्षत्रिय होना चाहिए मन्त्रीमण्डलमें ; भीष्मजीका वचन है — महाभारतके शान्तिपर्वमें — ताकि सुरक्षा व्यवस्था सन्तुलित रहे। इक्कीस वैश्य होने चाहिए ; मन्त्रीमण्डलमें इक्कीस वैश्य होना चाहिए — अपना घर भरनेके लिए नहीं कृषि, गौरक्ष्य, वाणिज्यके प्रकल्प सन्तुलित रूपमें सबको सुलभ रहे इसलिए। तीन शूद्र होना चाहिए मन्त्रीमण्डलमें और एक सूत सांस्कृतिक मन्त्रीके रूपमें होना चाहिए। चार ऊपर, चार नीचे, बीच में आठ और इक्कीस ; उसमें फिर सात मन्त्री प्रमुख होने चाहिए।
Royal Elephant
तो हमने एक संकेत किया कि अगर आपको देशके लिए बहुत कुछ करना हो तो ये घोषित करें — जब ब्रिटेन वैकल्पिक राजतन्त्रको सुरक्षित रखकर अपने आपको बुलन्द रख सकता है तो भारतको क्या हो गया ? और ये अंग्रेजोंकी कूटनीति — अपने यहाँ वैकल्पिक राजतन्त्र – व्यासतन्त्रको भी सुरक्षित रखा है, हमारे यहाँ सत्तर वर्ष पहले उन्होंने नष्ट कर दिया। अंग्रेजोंकी कूटनीतिको समझनेकी आवश्यकता है ; उसपर पानी फेरें

श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य
— श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती महाराजजीके वक्तव्यसे;
स्थान: मोदीनगर, दिनांक: १६ जून २०१८

राजतन्त्रमें सभी वर्णोंका समावेश है


महाभारत के शांतिपर्व में इस तथ्य को उद्भाषित किया गया है कि राजा के मंत्रिमंडल में चार शिक्षाविद् ब्राह्मण हों जो वेदविद्या में विद्वान, निर्भीक, बाहर-भीतर से शुद्ध एवं स्नातक हों। शरीर से बलवान तथा शस्त्रधारी, रक्षा के विशेषज्ञ आठ क्षत्रिय हों। कृषि, गौरक्षा और वाणिज्य के प्रकल्प को क्रियान्वित करने के लिए धन-धान्य से सम्पन्न इक्कीस अर्थशास्त्र के मर्मज्ञ वैश्य हों। सेवा, श्रम, कुटीर उद्योग और नव उद्योग के प्रकल्प को क्रियान्वित करने के लिए पवित्र आचार-विचार वाले तीन विनयशील शूद्र हों। अष्टगुणसम्पन्न पुराणविद्याविशारद एक सूत सांस्कृतिक मंत्री राजा के मंत्रिमंडल में सन्नहित हों। इस प्रकार राजतंत्र में सब वर्णों का समावेश है।
चतुर्वर्ण
In the Shanti Parva of the Mahabharata, it has been revealed that the king’s cabinet should have four educated Brahmins who are experts in Vedas, fearless, and pure from inside & outside. There should be eight Kshatriyas who are physically strong & armed and experts in defence. Twenty-one Vaishyas who are well endowed with wealth and are experts in economics should be there to implement the projects of agriculture, cow protection & commerce. Three humble Shudras with pure conduct and thoughts should be there to implement the projects of service, labour, & cottage industry. One Sut, a cultural minister who is expert in Purana Vidya, endowed with eight qualities, should be present in the King’s cabinet of ministers. Thus, every Varna gets a fair share in a Monarchy.
— श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती महाराजजीके
वक्तव्यसे; स्थान: जैसलमेर, दिनांक: १४ जून २०१८

विद्या, बल, धन और सेवाबलमें परस्पर समन्वय


श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य

ब्राह्मणोंमें विद्या (सरस्वती)की, क्षत्रियोंमें सैन्य बल (शक्ति)की, वैश्योंमें धन (सम्पत्ति) और शूद्रोंमें सेवाकी प्रतिष्ठा होती है। विद्यासे नियन्त्रित और समन्वित बल, विद्या और बलसे नियन्त्रित और समन्वित धन तथा विद्या, बल और धनसे नियन्त्रित एवम् समन्वित सेवासे सर्वहित सुनिश्चित है।”

“जब विद्यापर बलका वर्चस्व होता है अर्थात् शिक्षातन्त्रमें प्रतिष्ठित विद्यापर शासनतन्त्रमें प्रतिष्ठित शक्तिका आधिपत्य होता है, तब समाजमें विप्लवका वातावरण छा जाता है। जब विद्या और बलपर व्यापारतन्त्रमें प्रतिष्ठित धन-सम्पत्तिका वर्चस्व होता है, तब समाजमें अति विप्लव होने लगता है। जब विद्या, बल, और धनपर श्रमिकवर्गमें सन्निहित सेवाका वर्चस्व (शासन) होता है, तब विश्व विनाशकी विभीषिकासे सन्तप्त होने लगता है।”


— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीति और अध्यात्म” पृष्ठ संख्या ३६