राजनीतिकी परिभाषा और स्वस्थ व्यूहरचना
जब इस यान्त्रिक युगमें भी सनातन वैदिक आर्य हिन्दुओंका सनातन परम्पराप्राप्त कृषि, जलसंसाधन, भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, उत्सव – त्योहार, रक्षा, सेवा, न्याय और विवाहादिका विज्ञान विश्वस्तरपर सर्वोत्कृष्ट है;
तब हमारी संस्कृतिके अनुसार स्वतन्त्र भारतमें भी शासनतन्त्र सुलभ न होना तथा सत्तालोलुप, अदूरदर्शी दिशाहीन शासनतन्त्रको सांस्कृतिक और सामाजिक किसी भी संघटनके द्वारा चुनौती प्राप्त न होना हमारे अस्तित्व और आदर्शके विलोपका मुख्य कारण और भीषण अभिशाप है।
अतः सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ, और सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाजकी संरचना विश्वस्तरपर राजनीतिकी परिभाषा उद्घोषितकर उसे क्रियान्वित करनेके लिए स्वस्थ व्यूहरचना नितान्त अपेक्षित है।
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती
द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या २३९