प्रजा के पाँच भय

राजकर्त्तव्य राजधर्म

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


पञ्चधा भय


आयु (मु)क्तिकेभ्यश्चौरेभ्य: पौरेभ्यो राजवल्लभात्।
पृथिवीपतिलोभाच्च प्रजानां पञ्चधा भयम्।।

अग्निपुराण २३९. ४६

आयुक्त्तक (रक्षाधिकारी राजकर्मचारी), चोर, शत्रु, राजाके प्रिय सम्बन्धी तथा राजाके लोभसे प्रजाको पाँच प्रकारका भय प्राप्त होता है।।”

उक्त पाँचों प्रकारके भयसे प्रजाकी रक्षा करना राजाका दायित्व है। तदर्थ सद्भावपूर्ण सम्वाद तथा सतत सतर्कता एवम् पक्षपातरहित संयमपूर्ण जीवन अपेक्षित है।


— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या २३६

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