पञ्चधा भय
आयु (मु)क्तिकेभ्यश्चौरेभ्य: पौरेभ्यो राजवल्लभात्।
पृथिवीपतिलोभाच्च प्रजानां पञ्चधा भयम्।।
अग्निपुराण २३९. ४६
“आयुक्त्तक (रक्षाधिकारी राजकर्मचारी), चोर, शत्रु, राजाके प्रिय सम्बन्धी तथा राजाके लोभसे प्रजाको पाँच प्रकारका भय प्राप्त होता है।।”
उक्त पाँचों प्रकारके भयसे प्रजाकी रक्षा करना राजाका दायित्व है। तदर्थ सद्भावपूर्ण सम्वाद तथा सतत सतर्कता एवम् पक्षपातरहित संयमपूर्ण जीवन अपेक्षित है।
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या २३६
पृथिवीपतिलोभाच्च प्रजानां पञ्चधा भयम्।।
अग्निपुराण २३९. ४६
“आयुक्त्तक (रक्षाधिकारी राजकर्मचारी), चोर, शत्रु, राजाके प्रिय सम्बन्धी तथा राजाके लोभसे प्रजाको पाँच प्रकारका भय प्राप्त होता है।।”
उक्त पाँचों प्रकारके भयसे प्रजाकी रक्षा करना राजाका दायित्व है। तदर्थ सद्भावपूर्ण सम्वाद तथा सतत सतर्कता एवम् पक्षपातरहित संयमपूर्ण जीवन अपेक्षित है।
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या २३६