नीति, शक्ति और श्री

नीति-शक्ति-सङ्गतिः सनातन धर्म

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


नीति और शक्ति


यत्र नीतिबले चोभे तत्र श्रीस्सर्वतोमुखी।।
(शुक्रनीति १. १७)
नीतिशास्त्रविशारद राजन्
“जो नीति तथा शक्ति दोनोंसे सम्पन्न है, उसे सब ओरसे सब प्रकारकी श्री स्वतः सुलभ होती है।।”

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या १६८

योद्धा
इतिहास साक्षी है कि महान नेता और योद्धा अपनी वीरता के बल पर ही साम्राज्य स्थापित कर पाए हैं। चाहे वह चाणक्य की नीतियाँ हों या महाराणा प्रताप या राणा सांगा का युद्धकौशल, सभी ने “वीर भोग्या वसुंधरा” के मूल सिद्धान्त को अपनाया। यह नेतृत्व की गुणवत्ता को भी प्रदर्शित करता है, जहाँ एक योद्धा के रूप में वीरता के दृष्टिकोण का होना अनिवार्य है।

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