मनुस्मृतिके तिरस्कारके कारण भारतमें नैतिक विपन्नता
भारतकी नैतिक विपन्नताका कारण उस संविधान (मनुस्मृति)का तिरस्कार है, जिसमें
शिक्षा – रक्षा – कृषि – गोरक्ष्य – वाणिज्य – सेवा और कुटीर तथा लघु
उद्योगको हर व्यक्ति तथा वर्गको सन्तुलितरूपसे सुलभ करानेकी अचूक विधा थी।
जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र संज्ञक चारों वर्णों की संख्याको आश्रमप्रथासे
अपेक्षाके अनुरूप संतुलित रखनेकी क्षमता थी। जिसमें ब्रह्माधिष्ठित प्रकृतिप्रदत्त समस्त
भेदभूमियोंके सदुपयोग और निर्भेद और निर्दोष परमात्मामें मनोयोगकी दिव्यता थी।
जिसमें प्रवृत्तिका पर्यवसान निवृत्तिमें और निवृत्तिका पर्यवसान निर्वृत्ति (मुक्ति)में
सुनिश्चित था। जिसकी आधारशिला देहके नाशसे जीवका अनाश और देहके भेदसे
जीवमें अभेदकी वैदिकी गाथा थी।
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सूक्तिसुधा” पृष्ठ संख्या ३७ – ३८
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सूक्तिसुधा” पृष्ठ संख्या ३७ – ३८