मनुस्मृति ही वैदिक संविधान है

राजधर्म राष्ट्रोत्कर्ष अभियान सनातन धर्म सनातन वर्णाश्रमव्यवस्था सनातन संविधान हिन्दूराष्ट्र

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


मनुस्मृति ही वैदिक संविधान है


प्रवृतिकी सार्थकता निवृत्तिमें है और निवृत्तिकी सार्थकता निवृति-मुक्तिमें है — मनुस्मृतिका ये सारांश है और अपने स्वधर्मका पालन करने पर लौकिक उत्कर्ष भी होता है, पारलौकिक उत्कर्ष भी होता है, परमात्माकी प्राप्तिका मार्ग भी प्रशस्त होता है। मनुस्मृतिका सारांश — इससे कौन असहमति व्यक्त करेगा ? जो जानकार नहीं होगा वही।”

मनुस्मृति
स्वतन्त्र भारतमें विषाक्त वातावरण प्रस्तुत किया किया गया ; प्रश्न यह उठता है कि ब्रिटेनमें परम्परा प्राप्त राजवन्श नहीं है, वैकल्पिक राजवन्श है — वहाँकी महारानी चौरानवे सालकी हो गई — ब्रिटेनको वैकल्पिक राजवन्श वरदानके रूपमें प्राप्त है और भारतको परम्परा प्राप्त राजवन्श अभिशापके रूपमें प्राप्त है — कोई बुद्धिमान मानेगा ? वैकल्पिक पोप क्रिश्चियनोंको वरदानके रूपमें प्राप्त है (जो ब्राह्मण नहीं है), वैकल्पिक ब्राह्मण क्रिश्चियनोंको पोपके रूपमें प्राप्त है और हमको प्रामाणिक आचार्य जो प्राप्त हैं वो अभिशाप है, कोई स्वीकार करेगा ? समझमें आएगा ? जब वो विकल्पसे काम चला रहे हैं तो हमारे पास तो मुख्य धारा है — शिक्षा, रक्षा, अर्थ, सेवा, स्वच्छता आदिके प्रकल्प सदा सन्तुलित रूपसे समाजको सुलभ हों — इसकी स्वस्थ परम्परा क्या हो सकती है इस राकेट, कम्प्यूटर, एटम, मोबाइलके युगमें भी, इसपर विचार कीजिए। शिक्षण, प्रशिक्षणके बलपर अगर ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि बनाएँगे — आवश्यकता तो होगी ना ; शिक्षा, रक्षा, अर्थ, सेवा, स्वच्छताके प्रकल्प तो चाहिए समाजको — पाँच विभाग तो चाहिए, अगर आप शिक्षण – प्रशिक्षणके बलपर ही पाँच विभाग बनाएँगे तो शिक्षण – प्रशिक्षणके नामपर समय का अधिक उपयोग होगा, सम्पत्तिका अधिक उपयोग होगा, संस्कारका आधान नहीं होगा, सन्तुलन भी नहीं बनेगा — इतने दोष हैं।”

परम्परासे चिढ़ क्यों है ? कहना चाहिए गांधीजीने विषाक्त वातावरण बो दिया, परम्पराके प्रति अनास्था उत्पन्न कर दी। पचहत्तर वर्ष पहले तक सनातन सिद्धान्त क्रियान्वित था अंग्रेजों के शासनकालमें भी। अंग्रेजोंको जो सफलता मिली, जितने अंशों में अंग्रेजोंके शासनकी प्रशंसाकी जाती है — मनुस्मृतिको जितने अंशोंमें उन्होंने क्रियान्वित किया, उतने अंशोंमें ही। अब पचहत्तर वर्षोंमें क्या हो गया कि मनु अभिशाप सिद्ध हो गए। मनुका अर्थ होता है मन्त्र, मनुका अर्थ होता है मन्त्रार्थ विद्, मनुका अर्थ होता है मन्त्रदृष्टा, मनुका अर्थ होता है वैदिक सिद्धान्तको व्यवहारमें उतारने वाले ; वैदिक संविधानका नाम ही मनुस्मृति है।”

श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य
— श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती महाराजका वक्तव्य; स्थान: शिवगङ्गा आश्रम, प्रयागराज। दिनांक: २९ जून २०२१

related Posts