"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय, शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"
क्या मनुस्मृतिके आधार पर संविधान हो सकता है ?
“भारतीय संविधानमें जितना अंश सनातन धाराके अविरुद्ध है, उसपर आवाज़ उठाइए तो विरोधका सामना नहीं करना पड़ेगा (उदाहरणके लिए) और हमारे लिए वो वरदान सिद्ध हो जाएगा। भारतीय संविधानकी पच्चीसवीं धारा — उसके अनुसार जैन, बौद्ध, सिक्ख ये सब हिन्दू परिभाषित किए गए, घोषित किए गए। सत्तालोलुप और अदूरदर्शी केन्द्रीय शासनतन्त्रोंने क्या किया — बौद्धोंको अल्पसंख्यक, सिक्खोंको अल्पसंख्यक, और पाँच वर्ष पहले कांग्रेसने क्या किया – जैनोंके तबकेको अल्पसंख्यक घोषित कर दिया। अब क्या प्रयास था कांग्रेसका (मैं बीचमें कूद पड़ा था तो नहीं दाल गली), कि वनवासियोंको और लिङ्गायतोंको अल्पसंख्यक घोषित करनेका भाव था ; देवयोगसे मैं कूद पड़ा पहले ही, इन लोगोंकी दाल नहीं गली। आचार्यपद पर प्रतिष्ठित व्यक्तियोंसे भी इनको अल्पसंख्यक कहलवा दिया गया — फिर भी दाल नहीं गली किसीकी। समझ गए ?”
“अब ये आवाज बुलन्द होनी चाहिए, इसमें क्या है अम्बेडकरजीके जो अनुयायी हैं वो साथ दें या ना दें, विरोध नहीं कर सकते। आवाज ये आनी चाहिए कि हमको भारतीय संविधानकी मूल पच्चीसवीं धारा चाहिए, पुनः क्रियान्वित हो। उसमें जो शोधन कर दिया गया वो देशके हितमें नहीं है ; तो विश्वस्तरपर जितने जैन, बौद्ध, सिक्ख हैं — वो सब हिन्दूमें आ जाएँगे और आगे हिन्दुओंके कटनेका (एक-एक घटकके कटनेका) मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा। जनसंख्याकी दृष्टिसे हम नम्बर दो पर पहुँच जाएँगे। इतना कर लीजिए, इसमें विरोध तो नहीं ही होगा, समर्थनमें अन्त्यज भी आ जाएँगे। तो ये जो है पच्चीसवीं धारा की बात बुलन्द करें तो बवण्डर भी नहीं होगा और काम सध गया तो सात दिनके अन्दर हम जनसंख्याकी दृष्टिसे विश्वमें दूसरे नम्बर पर पहुँच जाएँगे।”