शिक्षा, रक्षा, अर्थ और सेवाको सन्तुलित रखनेका शाश्वतसिद्धान्त

सनातन धर्म सनातन वर्णाश्रमव्यवस्था सनातन संविधान हिन्दूराष्ट्र

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


शिक्षा, रक्षा, अर्थ और सेवाको सन्तुलित रखनेका शाश्वतसिद्धान्त


“समाजमें शिक्षा, रक्षा, अर्थ और सेवाको सन्तुलित एवं सुव्यवस्थित रखनेके लिए हर व्यक्ति और वर्गकी जीविकाको सुरक्षित रखनेवाली सनातन वर्णव्यवस्था है। पूर्वकर्मानुरूप वर्तमान जन्म, जन्मनियन्त्रित वर्ण, वर्णनियन्त्रित आश्रम और वर्णाश्रम नियन्त्रित कर्मव्यवस्था सनातनधर्मकी अपूर्वता है। स्वाधिकारानुरूप कर्मसम्पादनसे सिद्धि, सुख और परांगतिकी निष्पन्नता वर्णाश्रमव्यवस्थाका फल है। वर्णाश्रम वह दार्शनिक और वैज्ञानिक व्यवस्था है, जहाँ हर व्यक्तिको सम्मान, सुविधा, और सुखद जीवन सुलभ है। समस्त भेदोंके मूलमें प्रतिष्ठित निर्भेदात्मतत्त्वके अधिगम और भेदोपयोगमें दक्षता वर्णाश्रमव्यवस्थाकी अनुपम अपूर्वता है।”

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीति और अध्यात्म” पृष्ठ संख्या ७९-८०

related Posts