षड्गुण
“सन्धि, विग्रह, यान (यात्रा), आसन, द्वैधीभाव और संश्रय संज्ञक राजधर्मके अन्तर्गत छह गुण कहे गये हैं। – ”
सन्धिश्च विग्रहश्चैव यानमासनमेव च।
द्वैधीभाव: संश्रयश्च षड्गुणा: परिकीर्त्तिता:।।
(महाभारत – शान्तिपर्व २३४. १७)
“किसी शर्तपर समकक्ष या प्रबल शत्रुसे सामञ्जस्य ‘सन्धि’ है। युद्धादिके द्वारा उसे हानि पहुँचाना ‘विग्रह’ है। विजयाभिलाषी राजा जो शत्रुके ऊपर चढ़ाई करता है, वह यात्रा या ‘यान’ है। विग्रह छेड़कर अपने ही देशमें रहना ‘आसन’ है। आधी सेनाको किलेमें छिपाकर आधी सेनाके साथ युद्धकी भावनासे यात्रा करना ‘द्वैधीभाव’ है। असमर्थताकी दशामें लाभकी सम्भावना होने पर उदासीन अथवा मध्यम राजाकी शरणागति ‘संश्रय’ है।“
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या २२८
सन्धिश्च विग्रहश्चैव यानमासनमेव च।
द्वैधीभाव: संश्रयश्च षड्गुणा: परिकीर्त्तिता:।।
(महाभारत – शान्तिपर्व २३४. १७)
“किसी शर्तपर समकक्ष या प्रबल शत्रुसे सामञ्जस्य ‘सन्धि’ है। युद्धादिके द्वारा उसे हानि पहुँचाना ‘विग्रह’ है। विजयाभिलाषी राजा जो शत्रुके ऊपर चढ़ाई करता है, वह यात्रा या ‘यान’ है। विग्रह छेड़कर अपने ही देशमें रहना ‘आसन’ है। आधी सेनाको किलेमें छिपाकर आधी सेनाके साथ युद्धकी भावनासे यात्रा करना ‘द्वैधीभाव’ है। असमर्थताकी दशामें लाभकी सम्भावना होने पर उदासीन अथवा मध्यम राजाकी शरणागति ‘संश्रय’ है।“
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या २२८