हे आर्यवीर ! हे धर्मवीर ! तू प्रबल
हे आर्यवीर ! हे धर्मवीर ! तू प्रबल,
है सर्वोत्कृष्ट श्रुति – युक्ति – अनुभूतिबल,
तू प्रबल, तू प्रबल ; धर्मवीर तू निकल,
वेदविहीन विज्ञानबल अति ही दुर्बल,
वीरवर, यह रहस्य, तू समझ, तू समझ ।।१।।

हे आर्यवीर ! हेधर्मवीर ! तू प्रबल,
काम – राग – विवर्जित बल है अतिप्रबल,
धर्मेश्वरका समाश्रय है अमोघ बल,
हितप्रद सङ्घबलका महत्त्व जानकर,
धर्मरक्षार्थ वीरप्रवर प्रयाण कर ।।२।।

हे आर्यवीर ! हे धर्मवीर ! तू प्रबल,
वेदसम्मत दर्शन और विज्ञानबल,
साम–दान–दण्ड–भेद – मायादि नयबल,
सम्पन्न वीर तू अजेय अति ही सबल,
धर्मरक्षार्थ शूरप्रवर प्रयाण कर ।।३।।
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या २१-२२
है सर्वोत्कृष्ट श्रुति – युक्ति – अनुभूतिबल,
तू प्रबल, तू प्रबल ; धर्मवीर तू निकल,
वेदविहीन विज्ञानबल अति ही दुर्बल,
वीरवर, यह रहस्य, तू समझ, तू समझ ।।१।।

हे आर्यवीर ! हेधर्मवीर ! तू प्रबल,
काम – राग – विवर्जित बल है अतिप्रबल,
धर्मेश्वरका समाश्रय है अमोघ बल,
हितप्रद सङ्घबलका महत्त्व जानकर,
धर्मरक्षार्थ वीरप्रवर प्रयाण कर ।।२।।

हे आर्यवीर ! हे धर्मवीर ! तू प्रबल,
वेदसम्मत दर्शन और विज्ञानबल,
साम–दान–दण्ड–भेद – मायादि नयबल,
सम्पन्न वीर तू अजेय अति ही सबल,
धर्मरक्षार्थ शूरप्रवर प्रयाण कर ।।३।।

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या २१-२२