हे आर्यवीर ! हे धर्मवीर ! तू प्रबल

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

नारायणाखिलगुरो भगवन् नमस्ते

जय गणेश
श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


हे आर्यवीर ! हे धर्मवीर ! तू प्रबल


हे आर्यवीर ! हे धर्मवीर ! तू प्रबल,
है सर्वोत्कृष्ट श्रुतियुक्तिअनुभूतिबल,
तू प्रबल, तू प्रबल ; धर्मवीर तू निकल,
वेदविहीन विज्ञानबल अति ही दुर्बल,
वीरवर, यह रहस्य, तू समझ, तू समझ ।।१।।

आर्यवीर-धर्मवीर
हे आर्यवीर ! हे धर्मवीर ! तू प्रबल,
कामरागविवर्जित बल है अतिप्रबल,
धर्मेश्वरका समाश्रय है अमोघ बल,
हितप्रद सङ्घबलका महत्त्व जानकर,
धर्मरक्षार्थ वीरप्रवर प्रयाण कर ।।२।।
आर्यवीर-धर्मवीर
हे आर्यवीर ! हे धर्मवीर ! तू प्रबल,
वेदसम्मत दर्शन और विज्ञानबल,
सामदानदण्डभेदमायादि नयबल,
सम्पन्न वीर तू अजेय अति ही सबल,
धर्मरक्षार्थ शूरप्रवर प्रयाण कर ।।३।।

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— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या २१-२२
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