व्यक्तिधर्म और राष्ट्रधर्म
“राष्ट्रकी सुरक्षा केवल तितिक्षु बन कर सम्भव नहीं। तितिक्षा व्यक्तिधर्म है, राष्ट्रधर्म नहीं।”

“राष्ट्रके नायकोंको यह समझना चाहिए कि कर्त्तव्यका निर्णय एकाङ्गी नहीं होता। विपक्षकी गतिविधिको देखते हुए राष्ट्ररक्षाका उपाय ढूँढ़ना और उसे क्रियान्वित करना चाहिए। शूरताके साथ सुशीलता तथा सुशीलताके साथ शूरताका सन्निवेश क्षात्रधर्म है। शूरता, सुशीलता, ओजस्विता तथा अमोघदर्शिता — सम्पन्न व्यक्ति राष्ट्रनायक हो सकता है।”
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सूक्तिसुधा” (सूक्तिशतक) पृष्ठ संख्या १२

“राष्ट्रके नायकोंको यह समझना चाहिए कि कर्त्तव्यका निर्णय एकाङ्गी नहीं होता। विपक्षकी गतिविधिको देखते हुए राष्ट्ररक्षाका उपाय ढूँढ़ना और उसे क्रियान्वित करना चाहिए। शूरताके साथ सुशीलता तथा सुशीलताके साथ शूरताका सन्निवेश क्षात्रधर्म है। शूरता, सुशीलता, ओजस्विता तथा अमोघदर्शिता — सम्पन्न व्यक्ति राष्ट्रनायक हो सकता है।”
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सूक्तिसुधा” (सूक्तिशतक) पृष्ठ संख्या १२
