श्रीहरिगुरुवन्दना

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥


श्रीहरिगुरुवन्दना


नारायण महाविष्णो श्रीधरानन्त केशव।
वासुदेव जगन्नाथ हृषिकेश नमो नम:।।

हे नारायण, महाविष्णो, श्रीधर,अनन्त, केशव, वासुदेव, जगन्नाथ, हृषिकेश, नमस्कार है,नमस्कार है।।

त्वयय्यात्मनि जगन्नाथे मम मनो रमतामिह।
कदा ममेदृशं जन्म मानुषं सम्भविष्यति।।

हे आत्मस्वरूप जगन्नाथ! मेरा मन आपमें यहाँ रमण करने योग्य हो सके, मेरा ऐसा मनुष्य जन्म कब सम्भव हो सकेगा?।।



मन्नाथ: श्रीजगन्नाथो मद्गुरु: श्रीजगद्गुरु:।
ममात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नम:।।

मेरे नाथ श्रीजगन्नाथ हैं, मेरे गुरु श्रीजगद्गुरु हैं, शोधित अहमर्थस्वरूप मैं सब प्राणियों का आत्मरूप हूँ। उस सर्वात्मस्वरूप जगद्गुरु जगन्नाथसंज्ञक श्रीगुरुदेवके लिए नमस्कार है।।

चैतन्यं शाश्वतं शान्तं व्योमातीतं निरंजनम्।
नादबिन्दुकलातीतं तस्मै श्रीगुरवे नम:।।

जो चैतन्य, सनातन, शान्त, आकाशसे अतीत, माया-कालुष्यविरहित, नाद – बिन्दु – कलासे पर हैं; उन श्रीगुरुदेवके लिए नमस्कार है।।
           

परमानन्दसमुद्रोल्लासनिवासैकपूर्णिमा ज्योत्स्ने।
श्रीमत्करपात्रचरणसरसीरूहपादुके वन्दे।।

परमानन्दरूप समुद्रके उल्लासपूर्णनिवासमें एकमात्र पूर्णचंद्रके प्रकाशसदृश श्रीमत्करपात्रमहाभागके युगलपादपद्मोंकी पादुकाओंकी मैं वंदना करता हूँ।।

संसृतिसागरनिपतल्लोकसमुद्धारकारणीभूते
श्रीमत्करपात्रचरणसरसीरूहपादुके वन्दे।।

जन्ममृत्युकी अनादिअजस्र परम्परारूप संसृतिसागरमें निमग्नहुए जीवोंके समुद्धार में हेतुभूता श्रीमत्करपात्रमहाभागके युगलपादपद्मोंकी पादुकाओंकी मैं वंदना करता हूँ।।



वन्दे विज्ञाननिस्यन्दां सच्चिदानन्दकंदलीम्।
शंकराचार्यवर्यार्णां वाक्सुधां रसशेवधिम्।।

विज्ञानघन सच्चिदानन्दकन्द शंकराचार्यप्रवरकी रसनिधि – वाक्सुधाकी वन्दना करता हूँ।।

पूर्वाम्नायपुरीपीठचिदाकाशस्वयम्प्रभा:।
ग़ुरवो निश्चलानन्दा विजयन्ते सतां हृदि।।

चिदाकाशस्वरूप पूर्वाम्नाय – पुरीपीठकी स्वयंप्रभा सत्पुरुषोंके हृदयमें विद्यमान गुरुवर निश्चलानन्द विजयश्री को प्राप्त हैं।।