वीर भोग्या वसुन्धरा

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥


Maa Lakshmi

न ही लक्ष्मी कुलक्रमज्जता न ही भूषणों उल्लेखितोपि वा।
खड्गेन आक्रम्य भुंजीत: वीर भोग्या वसुंधरा।।


पराशरस्मृति (प्रथम अध्याय, ६७ श्लोक)

ना ही लक्ष्मी निश्चित कुल से क्रमानुसार चलती है और ना ही आभूषणों पर उसके स्वामी का चित्र अंकित होता है। तलवार के दम पर पुरुषार्थ करने वाले ही विजेता होकर इस रत्नों को धारण करने वाली धरती को भोगते है।


                       

                          वीर भोग्या वसुंधरा!                        

                                   महाराणा
                                   

आदि अनादि काल से रही यही परम्परा।

कायरों ने दुःख सहे हैं, वीर भोग्या वसुंधरा।।

                                   ॐ

किंचित नहीं भयभीत हो विषम विपरीत बहाव में।

कर को अपने पर बना जो पतवार डाले नाव में।।

                                   Bhagwan Ram
                                   

हो तनिक विचलित नहीं वह व्यर्थ के तनाव में।

मरहम लगाना जानता जो स्वयं अपने घाव में।।

                                   श्री
                                   

काल के कराल से जो कभी नहीं डरा।

कायरों ने दुःख सहे हैं, वीर भोग्या वसुंधरा।।

                                   हिंदू राष्ट्र ध्वज
                                   

आवेगों की आंधी को जो दामन में बांधे हो

अश्रुधार को जो अपनी पलकों पर ही साधे हो।।

                                   भगवान राम
                                   

बृंदावन सा जीवन हो और मुख पर राधे राधे हो।

उत्तरदायित्वों से शोभित जिसके उन्नत कांधे हों।।

                                   आर्यवीर
                                   

इस धरा पर नाम जिसने कर्म से अमर करा।

कायरों ने दुःख सहे हैं, वीर भोग्या वसुंधरा।।

                                   Rajputana
                                   

जो अभाव में भाव खोज ले, सूनेपन में कलरव को।

पीड़ा से मुस्कान छीन ले और कोलाहल में नीरव को।।

                                   Hindu Flag
                                   

प्रतिबिम्बों से प्रतिमान गढ़े,जीर्णशीर्ण से नूतन नव को।

मृत्यु भी नमन करती है अंत समय उसके शव को।।

                                   राजपूत
                                   

मरकर भी इस जग से जो अद्यावधि तक नहीं मरा।

कायरों ने दुःख सहे हैं, वीर भोग्या वसुंधरा।।

-- हरवंश श्रीवास्तव 'हर्फ़'

                           महाराणा प्रताप

जो साहसी होते हैं, जो शूरवीर होते हैं, समर्थ होते हैं, वे ही धरती के संसाधनों का उपभोग करने के सही अधिकारी हैं।

योद्धा

इतिहास साक्षी है कि महान नेता और योद्धा अपनी वीरता के बल पर ही साम्राज्य स्थापित कर पाए हैं। चाहे वह चाणक्य की नीतियाँ हों या महाराणा प्रताप या राणा सांगा का युद्धकौशल, सभी ने “वीर भोग्या वसुंधरा” के मूल सिद्धान्त को अपनाया। यह नेतृत्व की गुणवत्ता को भी प्रदर्शित करता है, जहाँ एक योद्धा के रूप में वीरता के दृष्टिकोण का होना अनिवार्य है।

नीति और शक्ति


यत्र नीतिबले चोभे
तत्र श्रीस्सर्वतोमुखी।।

(शुक्रनीति १. १७)

“जो नीति तथा शक्ति दोनोंसे सम्पन्न है, उसे सब ओरसे सब प्रकारकी श्री स्वतः सुलभ होती है।।”

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या १६८

नीतिशास्त्रविशारद राजन्