सर्वे वर्णा: पाल्यमाना भवन्ति।
सर्वस्त्यागो राजधर्मेषु राजं-
स्त्यागं धर्मं चाहुरग्य्रं पुराणम्।।
”सब धर्मोंमें राजधर्म ही प्रधान है; क्योंकि उसके द्वारा सब वर्णोंका पालन होता है। राजन् ! राजधर्ममें धन – मान – प्राण – परिजन सब प्रकार के त्याग का समावेश है। ऋषिगण त्यागको सर्वश्रेष्ठ तथा प्राचीन धर्म बताते हैं।।”
(महाभारत-शान्तिपर्व ६३. २७)

राजधर्म (क्षात्रधर्म)
राजनीति, राजधर्म, दण्डनीति, अर्थनीति
और क्षात्रधर्म – ये पाँचो एकार्थक हैं।

युद्धमें अपने शरीरकी आहुति देना, समस्त प्राणियोंपर दया करना, लोकव्यवहारका ज्ञान प्राप्त करना, प्रजाकी रक्षा करना, विषादग्रस्त एवं पीड़ित मनुष्योंको दुःख और कष्टसे छुड़ाना — ये सब बातें राजाओंके क्षात्रधर्ममें ही विद्यमान हैं।
राजाओंसे राजधर्मके द्वारा पुत्रकी भाँति पालित होनेवाले जगतके सम्पूर्ण प्राणी निर्भय विचरते हैं, इसमें संशय नहीं है। इस प्रकार संसारमें क्षात्रधर्म ही सब धर्मोसे श्रेष्ठ सनातन, नित्य, अविनाशी, मोक्षतक पहुँचानेवाला सर्वतोमुखी है।
जो धर्म प्रत्यक्ष है, अधिक सुखमय है, आत्माके साक्षित्वसे युक्त है, छलरहित है तथा सर्वलोकहितकारी है, वह धर्म क्षत्रियोंमें प्रतिष्ठित है।
इस लोकमें प्रजावर्गको प्रसन्न रखना ही राजाओंका सनातन धर्म है। सत्यकी रक्षा और व्यवहारकी सरलता ही राजोचित कर्तव्य है।
— शांतिपर्व, महाभारत।
राजधर्म की स्थापना ही हर क्षत्रिय का स्वधर्म है।
रक्षा लोकस्य धारिणी
राजानं प्रथमं विन्देत् ततो भार्यां ततो धनम्।
राजन्यसति लोकस्य कुतो भार्या कुतो धनम्।।
(महाभारत-शान्तिपर्व ५७. ४१)
“मनुष्य पहले राजाको प्राप्त करे। उसके बाद
पत्नीका परिग्रह और धनका संग्रह करे।
लोकरक्षक राजाके न होनेपर कैसे भार्या
सुरक्षित रहेगी और किस तरह धनकी रक्षा हो सकेगी ?।।”
तद्राज्ये राज्यकामानां नान्यो धर्म: सनातन:।
ऋते रक्षां तु विस्पष्टां रक्षा लोकस्य धारिणी।।
(महाभारत-शान्तिपर्व ५७. ४२)
“राज्य चाहनेवाले राजाओंके लिए राज्यमें
प्रजाओंकी भलीभाँति रक्षाको छोड़कर अन्य
कोई सनातन धर्म नहीं है।
रक्षा ही लोकको धारण करनेवाली है।।”
राज्यं पण्यं न कारयेत्
तरसा बुद्धिपूर्वं वा निग्राह्या एव शत्रव:।
पापै: सह न संदध्याद् राज्यं पण्यं न कारयेत्।।
(महाभारत-शान्तिपर्व २४. १६)
“शत्रुओंको बल
और बुद्धिसे अपने वशमें
कर ही लेना चाहिये। पापियोंके साथ
कभी मेल नहीं करना चाहिये।
अपने राज्य (राष्ट्र) को बाजारका
सौदा नहीं बनाना चाहिये।।”