सङ्घे शक्ति: कलौयुगे

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


कलियुगमें संघमें शक्ति सन्निहित है


त्रैतायां मन्त्र शक्तिश्च ज्ञानशक्ति कृते युगे।
द्वापरे युद्ध शक्तिश्च संघे शक्ति कलौयुगे।।

संघे शक्ति कलौयुगे
सत्ययुगमें ज्ञान शक्ति, त्रेतामें मन्त्र शक्ति तथा द्वापरमें युद्ध शक्ति का बल था। किन्तु कलियुगमें सङ्गठनकी शक्ति ही प्रधान है।।”

संवाद, सेवा और सेना तीनोंका अनुशासित स्वरूप ही सङ्गठन है। यह आदर्श-स्वरूप ही राष्ट्रहितमें संलग्न व्यक्ति तथा सङ्गठनका लक्षण है।

संघे शक्ति कलौयुगे
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे”

धर्मसङ्घ – पीठपरिषद्के प्रकल्प


धर्मसम्राट

•   शैक्षिक और वैज्ञानिक संस्थानोंका सनातन – वैदिकविधासे सञ्चालन

•   सनातन – वैदिकविधासे धर्म, अर्थ, काम और मोक्षसंज्ञक पुरुषार्थ चतुष्टयकी सिद्धि

•   यज्ञसाधक और पृथ्वीके धारक गोवंश, गङ्गा, मठ – मन्दिर, विप्र, वेद, सती, सत्यशील, दानशील और निर्लोभ मनीषियोंका सर्वविध संरक्षण

•   वेदविज्ञानसम्मत अभ्युदयनि:श्रेयसप्रद विकासके क्रियान्वनकी भावनासे ऊर्जाके स्रोत पृथ्वी, पानी, प्रकाश और पवनके मौलिक स्वरूपका संरक्षण

•   महायन्त्रोंके प्रचुर प्रयोगसे संप्राप्त विभीषिकाका संयमन

•   दिशाहीन व्यापारतन्त्रका दूरीकरण

•   सत्तालोलुपता और अदूरदर्शिताके चपेटसे विमुक्त शासनतन्त्र

•   शिक्षा, रक्षा, न्याय, विवाह, संयुक्त परिवार, कृषि, गौरक्ष्य, वाणिज्य, सेवा और उद्योगकी वेदविज्ञानसम्मत सनातन – विधाका क्रियान्वन

•   सर्वहितसंरक्षण


— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या ८-९

सनातन सन्तसमितिका प्रकल्प


सन्त
सनातन – वैदिक – आर्य – सिद्धान्त का दार्शनिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक धरातल पर अर्थात् श्रुति, युक्ति तथा अनुभूतिके आधारपर विश्वस्तरपर ख्यापन

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या १०

राष्ट्रोत्कर्ष अभियानका प्रकल्प


राष्ट्रोत्कर्ष अभियान
कृषि, गौरक्ष्य, वाणिज्य और कुटीर तथा लघु उद्योगका
सनातन वैदिक विधासे क्रियान्वन

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या १०

हिन्दूराष्ट्रसङ्घका प्रकल्प


हिन्दूराष्ट्रसङ्घ
अन्योंके हितका ध्यान रखते हुए हिन्दुओंके अस्तित्व और आदर्शकी रक्षा, देशकी सुरक्षा और अखण्डताके लिए कटिबद्धता

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या ११

आदित्यवाहिनीका प्रकल्प


आदित्यवाहिनी
शूरता, सुशीलता, ओजस्विता और अमोघदर्शिताके सहित रक्षा तथा सेवाप्रकल्पका क्रियान्वन

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या ११

आनन्दवाहिनीका प्रकल्प


आनन्दवाहिनी
मातृशक्तिकी सहभागितासे सुशिक्षित, सुसंस्कृत, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण और स्वस्थ परिवार और समाजकी संरचना

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या १२

रामराज्यपरिषद्का प्रकल्प


रामराज्यपरिषद्
सनातन परम्पराप्राप्त व्यासपीठके स्वस्थ मार्गदर्शनमें धर्मनियन्त्रित पक्षपातविहीन शोषणविनिर्मुक्त सर्वहितप्रद सनातन शासनतन्त्रकी स्थापना

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” पृष्ठ संख्या १३

संघे शक्ति कलौयुगे


हिताय सर्वलोकानां निग्रहाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय प्रणम्य परमेश्वरम् ।। १ ।।


ग्रामे ग्रामे सभा कार्या ग्रामे ग्रामे कथा शुभा ।
पाठशाला मल्लशाला प्रतिपर्वमहोत्सव: ।। २ ।।


अनाथा विधवा रक्ष्या मन्दिराणि तथा च गौ: ।
धर्म्यं संघटनं कृत्वा देयं दानं च तद्धितम्।। ३ ।।


स्त्रीणां समादर: कार्य: दुःखितेषु दया तथा ।
अहिंसका न हन्तव्या आततायी वधार्हण: ।। ४ ।।


अभयं सत्यमस्तेयं ब्रह्मचयर्यं धृति: क्षमा ।
सेव्यं सदाऽमृतमिव स्त्रीभिश्च पुरुषैस्तथा ।। ५ ।।


कर्मणां फलमस्तीति विस्मर्तव्यं न जातुचित् ।
भवेत्पुन: पुनर्जन्म मोक्षस्तदनुसारत: ।। ६ ।।


स्मर्तव्य: सततं विष्णु: सर्वभूतेष्ववस्थित: ।
एक एवाद्वितियो य: शोकपापहर; शिव: ।। ७ ।।


पवित्राणां प्रवित्रं यो मङ्गलानाञ्च मङ्गलम् ।
दैवतं देवतानां च लोकानां योऽव्यय: पिता ।। ८ ।।


उत्तम: सर्वधर्माणां हिन्दूधर्मोऽयमुच्यते ।
रक्ष्य: प्रचारणीयश्च सर्वभूतहिते रतै: ।। ९ ।।

(स्वर्गीय महामना पंडित श्रीमदनमोहनमालवीयकृतो हिन्दूधर्मोपदेश:)

मदन मोहन मालवीय

परमेश्वरको प्रणाम करके सब प्राणियोंके हितके लिए दुष्टोंको दबाने और दण्ड देनेके लिए तथा धर्मकी स्थापनाके लिए धर्मके अनुसार संघटन करके गाँव-गाँवमें सभा करनी चाहिये।। गाँव-गाँवमें श्रीहरिकी मंगलमयी कथा करनी चाहिये। गाँव-गाँवमें पाठशाला और अखाड़ा खोलना चाहिये। पर्व-पर्वपर मिलकर महोत्सव मनाना चाहिये।। सभीको मिलकर अनाथोंकी, मन्दिरोंकी और लोकमाता गौकी रक्षा करनी चाहिये। इन सब कार्यों के लिए दान देना चाहिये।।”

स्त्रियोंका सम्मान करना चाहिये। दुःखियोंपर दया करनी चाहिये। उनको नहीं मारना चाहिये जो अहिंसक हों। शासनतन्त्रसे दण्डितकरना या मारना उनको चाहिये जो आततायी हों, अर्थात् जो स्त्रियोंपर या किसी दूसरेके धन या प्राणपर बल, विष, शस्त्रादिके द्वारा आघात करते हों, जो किसीके घरमें आग लगाते हों; ऐसे लोगोंको मारे बिना यदि अपना या दूसरोंका शील, प्राण या धन न बच सकें तो उनको मारना धर्म है।।”

स्त्रियों और पुरुषोंको भी अभय, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य, धैर्य (धीरज) और क्षमाका अमृतके समान वर्णाश्रमधर्मके अनुसार सदा सेवन करना चाहिये।। इस बातको कभी न भूलना चाहिये कि भले कर्मोंका फल भला और बुरे कर्मोंका फल बुरा अवश्य होता है तथा कर्मोंके अनुसार ही प्राणीको बार-बार जन्म लेना पड़ता है। साथ ही यह भी समझ लेना चाहिये कि फलाशाको त्यागकर भगवदर्थ स्वकर्मानुष्ठानसे अन्त:करणकी शुद्धिके अनन्तर अनात्मवस्तुओंसे विविक्त आत्माके ज्ञानसे मोक्ष मिलता है।।”

“उस सर्वव्यापक भगवान् विष्णुका सदा स्मरण करना चाहिये, जिसके समान दूसरा कोई नहीं है। जो एक ही अद्वितीय है। जो दुःख और पापका हरण करनेवाला शिवस्वरूप है, जो सभी पवित्र वस्तुओंसे अधिक पवित्र है। जो मङ्गलोंका भी मङ्गल है, जो सब देवताओंका देवता और समस्त संसारका एक अविनाशी पिता है।। उक्त तथ्योंका प्रतिपादक सब धर्मोंका उपजीव्य एवम् उद्गमस्थान होनेसे दैवासुरस्वभावसिद्ध आचार-विचाररूप अन्यसब धर्मोंसे उत्तम सनातनशास्त्रसिद्ध भोग-मोक्षप्रद यह हिन्दूधर्म कहा जाता है। सब प्राणियोंका हित चाहते हुए धर्मकी रक्षा और इसका प्रचार करना हमारा धर्म है।।”


— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीति और अध्यात्म” पृष्ठ संख्या १५९-१६०