हिन्दूराष्ट्र भारतका स्वरूप

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

"लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, गणेश, कार्तिकेय,
शिव, ब्रह्मा एवम् इन्द्रादि देवोंको तथा
वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ।।"


हिन्दूराष्ट्र भारतका स्वरूप क्या हो ? प्रजातन्त्र या राजतन्त्र ?


प्राचीनकालसे ही भारत राजतन्त्र की पद्धतिसे संचालित और क्षत्रियों द्वारा शासित राष्ट्र रहा है। भारतके अलग-अलग राज्यों (देशों)में क्षत्रिय राजाओंका राज और पूरे भारतवर्षके लिए चक्रवर्ती सम्राटका राज रहा है जो सदैव बाहरसे आने वाले आक्रांताओंसे प्रजाकी रक्षा करते आए हैं। इन राजाओंने सदा धर्मकी मर्यादामें रहकर प्रजाका पालन और रक्षण किया है।
प्रजातंत्र नहीं राजतंत्र
इसके विपरीत स्वतंत्रताके पश्चात् भारतने एक वर्ण-निरपेक्ष और धर्म-निरपेक्ष शासन पद्धतिको अपनाया जिसके फलस्वरूप आज भारतको सत्तालोलुप, अदूरदर्शी और दिशाहीन शासनतन्त्र प्राप्त है। अतः सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ, और सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाजकी संरचना के लिए हिन्दूराष्ट्र भारतको राजतन्त्रके रूपमें स्थापित करना अत्यन्त आवश्यक है।

हिन्दूराष्ट्र भारतके चक्रवर्ती राजा


प्रजाको प्रमुदित करनेवाला राष्ट्राधिपति राजा प्रजाको बाह्याभ्यन्तर सत्ता, स्फूर्ति और स्नेहप्रदायक सदा उद्दीप्त दिव्यालोक है। उसमें पृथ्वी, पानी, प्रकाश, पवन और आकाश ; तद्वत् ब्रह्माविष्णुशिवशक्तिगणपति, बृहस्पतिइन्द्रसोमसूर्यअग्निवरुणयमअश्विनी और कुबेरादिसदृश उत्पत्तिस्थितिसंहृतिनिग्रह ( / तिरोधान) और अनुग्रहशक्तियोंका सन्निवेश है। पृथ्वी और अग्निसदृश ब्रह्मबलसम्पन्न बृहस्पतितुल्य आचार्य तथा द्युलोक और आदित्यसदृश क्षत्रबलसम्पन्न इन्द्रतुल्य राजाके सौजन्यसे प्रजाको उन्नत जीवन, प्रकाश और उल्लासकी समुपलब्धि सुनिश्चित है। प्रजासे पोषित राजा प्रजाका सर्वविध परिपोषक सिद्ध होता है। सच्चिदानन्दस्वरूप सर्वेश्वरसे रञ्जित प्रजा राजाका उद्भवस्थान है।
चक्रवर्ती राजा
धर्मनियंत्रित पक्षपातविहीन शोषणविनिर्मुक्त सर्वहितप्रद सनातन शासनतन्त्रकी स्थापनाके बिना सबका समुचित पोषण असम्भव है। सनातनधर्ममें प्रजापालक राजतन्त्र उज्जवल और प्रखर राष्ट्रवाद का पोषक होता है। राजा ही कालका कारण होता है। राजा ही सत्ययुगकी सृष्टि करनेवाला होता है और राजा ही त्रेता, द्वापर, तथा चौथे युग कलिकी भी सृष्टिका कारण है। सदा उन्नतिकी इच्छा रखनेवाले देशको अपनी रक्षाके लिये किसी क्षत्रियको राजा अवश्य बना लेना चाहिये।

हिन्दूराष्ट्र भारतका संविधान क्या हो ?


सनातनपरम्पराप्राप्त ऋग्वेदादिसम्मत वैदिक संविधान मन्वादि धर्मशास्त्रोंमें सन्निहित है। आधुनिक शिक्षाप्रणालीसे शिक्षित हिन्दुओंमें कुछ हिन्दू, सनातनपरम्पराप्राप्त आचार और विचारको प्रगतिमें परिपन्थी मानकर देहात्मवादी तथा सनातन संविधानके विरोधी हो चुके हैं। गिने – चुने महानुभाव ही सनातन सार्वभौम सिद्धान्तके मर्मज्ञ तथा पक्षधर शेष हैं।

दार्शनिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक धरातलपर सर्वोत्कृष्ट सनातन संविधानके संरक्षण और तदनुकूल शासनतन्त्रकी स्थापनाके लिए सच्चिदानन्दस्वरूप सर्वेश्वरका अवतार होता है तथा सनातन संविधानके अनुरूप शासनका नाम ही धर्मराज्य और रामराज्य होता है। स्वतन्त्र भारत को धर्म तथा अध्यात्मविहीन अदूरदर्शितापूर्ण यान्त्रिक विकासतक सीमित संविधान प्राप्त है जो देहात्मवादका पोषक होनेके कारण वर्णसङ्करता तथा कर्मसङ्करताका उद्दीपक है।

सनातन संविधान
इस संवैधानिक सङ्क्रमण, सम्मिश्रण और सङ्घर्षके युगमें सर्वदेश, सर्वकाल तथा सर्वपरिस्थितिमें सर्वहितप्रद सनातन संविधानके प्रति सहिष्णुता उद्दीप्त करने तथा तदनुरूप शासनतन्त्रको विकसित करनेकी आवश्यकता है।


भारत धर्मनिरपेक्ष देश नहीं, भारत धर्मात्माओंका धर्मप्राण देश है।

हम हिन्दूराष्ट्र बनाएँगे


हिन्दूराष्ट्र भारत क्षत्रिय देशोंका सङ्घ हो। ये सभी देश सनातन सिद्धान्तका पालन करते हों। रक्षा, वित्त और आधारभूत संरचनाके कार्योंमें सभी देशोंमें परस्पर सहयोग हों।

सुरक्षा व्यवस्था, शासन तथा न्याय क्षत्रियोंके अधीन हो। शिक्षा, धर्म और मठ-मन्दिर ब्राह्मणोंके द्वारा संचालित हों। व्यापार, कृषि और गोरक्षा के प्रकल्प वैश्योंके तथा समाजके सभी धन-अर्जन और सेवाके प्रकल्प शूद्रोंके अधीन हो।


India Emblem

जब आप राजतंत्र को तोड़ने की क्षमता रखते थे, तो उन राजवाडों को बुला कर के एक सार्वभौम राजा बना देने की क्षमता आपमें थी या नहीं?

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी के “वक्तव्य” से

हिन्दूराष्ट्र भारत — अखण्ड भारत


अखंड भारत
अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, श्री-लंका, म्यांमार, भूटान सहित जितने भी भूभागों में भारत का विघटन हुआ है, उन सभी का भारत में पुन: विलय हो।

भारत अखंड हो।

भारत अखण्ड हो !


गिने चुने वर्षोंमें पाकिस्तान भारत हो, बांग्लादेश भारत हो, चीनके पास खिसकी धरती भारतकी धरती हो, मानसरोवर कैलाश भारतके तीर्थ हों, शक्ति समन्वित सामञ्जस्यके बल पर शीघ्र ही भारत अखण्ड हो। काँची वाले महाभागने एकांतमें कहा — मैंने दूसरोंसे सुना है कि आप भरी सभामें कहते हैं कि गोहत्या बंद हो ? मैंने कहा इतना ही नहीं मैं तो बहुत कुछ कहता हूँ। तो सुनाइए क्या कहते हैं ? मैंने कहा कि गोहत्या बंद हो ! मैं कहता हूँ भरी सभामें भारत अखण्ड हो, गिने चुने वर्षोंमें पाकिस्तान भारत हो, बांग्लादेश भारत हो, चीनके पास खिसकी धरती भारतकी धरती हो, मानसरोवर कैलाश भारतके तीर्थ हों — यह भी मैं कहता हूँ। उन्होंने कहा और सुनाइये ; आप भी सुन लीजिए ताली मत बजाइये। गिने चुने वर्षोंमें पाकिस्तान भारत हो, बांग्लादेश भारत हो, चीनके पास खिसकी धरती भारतकी धरती हो, मानसरोवर कैलाश भारतके तीर्थ हों, शक्ति समन्वित सामञ्जस्यके बल पर शीघ्र ही भारत अखण्ड हो, यह भी मैं कहता हूँ।।

श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य
— श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती महाराजजीके वक्तव्यसे

सन् १९११ से २०११ तकके देशविभाजनकी तालिका


१९११ से २०११ तकके देशविभाजन

1. अंग्रेजोंके शासनकालमें सन् १९११ (1911) में वर्तमान श्रीलंकाको भारतसे पृथक् किया गया।

2. अंग्रेजोंके शासनकालमें सन् १९३५ (1935) में भारत के भूभाग म्यांमार (बर्मा) को पृथक् किया गया।

3. अंग्रेजोंके शासनकालमें सन् १९४७ (1947) में वर्तमान पाकिस्तान तथा बंगलादेशको भारतसे पृथक् किया गया।

4. सन् १९४७ (1947) में पाक अधिकृत कश्मीर(आज़ाद भारत) को नेहरूजीके शासनकालमें भारतसे पृथक् किया गया।

5. सन् १९५० (1950) में नेहरूजीके शासनकालमें भारत-चीन मैत्रीकी ओटमें चीनने तिब्बतको हड़प लिया।

6. सन् १९५४ (1954) में नेहरूजीके शासनकालमें भारतसरकारने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगलादेश) को पश्चिम बंगालका बेरूबाड़ी क्षेत्र सौंपकर देशको विखंडित किया।

7. सन् १९५८ (1958) में नेहरूजीके शासनकालमें चीनने देशके सीमावर्ती क्षेत्रपर अधिकार कर लिया।

8. सन् १९६२ (1962) में चीनने नेहरूजीके शासनकालमें भारतकी बासठ हजार वर्गमील भूमिपर अधिकार जमा लिया।

9. सन् १९६३ (1963) में नेहरूजीके शासनकालमें भारतसरकारने अंडमान नामक द्वीपसमूहका सर्व नामक द्वीप म्यांमार (बर्मा) को सौंप कर देशको विखंडित किया।

10. सन् १९७२ (1972) में इंदिरागाँधीके शासनकालमें भारतसरकारने कच्चा तीबू द्वीप श्रीलंकाको सौंप कर देशको विखंडित किया।

11. सन् १९८२-८३ (1982-83) में चीनने भारतके अरुणाचलक्षेत्रके भूभागको हड़प लिया।

12. सन् १९९२ (1992) में नरसिंहरावके शासनकालमें भारतसरकारने तीन बीघा भूभाग बंगलादेशको देकर देशका विभाजन किया।

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “राष्ट्रोत्कर्ष-अभियान” पृष्ठ संख्या ८५-८६

भारतकी अखंडता स्वस्थक्रांतिकी सफलता

रामराज्य (धर्मराज्य)


दशवर्षसहस्त्राणि दशवर्षशतानि च।
अयोध्याधिपतिर्भूत्वा रामो राज्यमकारयत्।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ६१)

श्रीरामने अयोध्याके अधिपति होकर ग्यारह हजार वर्षोंतक राज्य किया।।”
रामराज्य
सन्तुष्टा: सर्वसिद्धार्था निर्भया: स्वैरचारिण:।
नरा: सत्यव्रताश्चासन् रामे राज्यं प्रशासति।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५७)

श्रीरामचन्द्र जब राज्य करते थे उस समय सब मनुष्य सन्तुष्ट, पूर्णकाम, निर्भय, स्वच्छन्द (स्वाधीन) और सत्यव्रती थे।।”

विधवा यस्य विषये नानाथाः काश्चनाभवत्।
सदैवासीत् पितृसमो रामो राज्यं यदन्वशात्।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५२)

“उनके राज्यमें कोई विधवा और अनाथ नहीं हुई। श्रीरामचन्द्रने जबतक राज्यका शासन किया, तब तक वे अपनी प्रजाके लिए सदा ही पिताके समान कृपालु बने रहे।।”
रामराज्य
कालवर्षी च पर्जन्य: सस्यानि समपादयत्।
नित्यं सुभिक्षमेवासीद् रामे राज्यं प्रशासति।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५३)

मेघ समयपर वर्षा करके खेतीको उत्तम ढङ्गसे सम्पन्न करता था अर्थात् उसे विकसित होने, फूलने तथा फलनेका अवसर देता था। रामजीके राज्यशासनकालमें सदा सुकाल ही रहता था, अर्थात् कभी अकाल नहीं पड़ता था।।”

प्राणिनो नाप्सु मज्जन्ति नान्यथा पावकोऽदहत्।
रूजाभयं न तत्रासीद् रामे राज्यं प्रशासति।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५४)

रामजीके राज्यशासनकालमें कभी कोई प्राणी जलमें नहीं डूबते थे, आग अमर्यादितरूपसे कभी किसीको नहीं जलाती थी तथा किसीको रोगका भय नहीं था।”
रामराज्य
आसन् वर्षसहस्त्रिण्यस्तथा वर्षसहस्त्रकाः।
।।अरोगा: सर्वसिद्धार्था रामे राज्यं प्रशासति।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५५)

श्रीरामचन्द्रजी जब राज्यका शासन करते थे, उन दिनों हजार वर्षतक जीनेवाली स्त्रियाँ और सहस्त्रों वर्षतक जीवित रहनेवाले पुरुष थे। किसीको कोई रोग नहीं सताता था, सभीके सारे मनोरथ सिद्ध होते थे।।”

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या १७०-१७१

धर्मनियन्त्रित शासनतन्त्र


धर्मनियन्त्रित शासनतन्त्र

धर्मनियंत्रित पक्षपातविहीन शोषणविनिर्मुक्त सर्वहितप्रद सनातन शासनतन्त्रकी स्थापना हमारा लक्ष्य है।

‘सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ, और सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाजकी संरचना’ — राजनीतिकी मन्वादि धर्मशास्त्रसम्मत विश्वस्तरपर सर्वसम्मत सार्वभौम परिभाषा है।

अन्योंके हितका ध्यान रखते हुए हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्शकी रक्षा, देशकी सुरक्षा और अखंडताके लिए कटिबद्धता हमारा व्रत है।