हिंदूराष्ट्र भारत का स्वरूप

श्री हरि:
श्रीगणेशाय नमः

श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्।
ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥


                                   प्रजातंत्र नहीं राजतंत्र
                               

हिंदूराष्ट्र का स्वरूप क्या हो ?


प्रजातन्त्र या राजतन्त्र ?


प्राचीनकालसे ही भारत राजतन्त्र की पद्धतिसे संचालित और क्षत्रियों द्वारा शासित राष्ट्र रहा है। भारतके अलग-अलग राज्यों (देशों)में क्षत्रिय राजाओंका राज और पूरे भारतवर्षके लिए चक्रवर्ती सम्राटका राज रहा है जो सदैव बाहरसे आने वाले आक्रांताओंसे प्रजाकी रक्षा करते आए हैं। इन राजाओंने सदा धर्मकी मर्यादामें रहकर प्रजाका पालन और रक्षण किया है।

इसके विपरीत स्वतंत्रताके पश्चात् भारतने एक वर्ण-निरपेक्ष और धर्म-निरपेक्ष शासन पद्धतिको अपनाया जिसके फलस्वरूप आज भारतको सत्तालोलुप, अदूरदर्शी और दिशाहीन शासनतन्त्र प्राप्त है। अतः सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ, और सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाजकी संरचना के लिए हिन्दूराष्ट्र भारतको राजतन्त्रके रूपमें स्थापित करना अत्यन्त आवश्यक है।

हिंदूराष्ट्र भारत — अखंड भारत


अखंड भारत
अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, श्री-लंका, म्यांमार, भूटान सहित जितने भी भूभागों में भारत का विघटन हुआ है, उन सभी का भारत में पुन: विलय हो।

भारत अखंड हो।

सन् १९११ से २०११ तकके देशविभाजनकी तालिका


१९११ से २०११ तकके देशविभाजन

1. अंग्रेजोंके शासनकालमें सन् १९११ (1911) में वर्तमान श्रीलंकाको भारतसे पृथक् किया गया।

2. अंग्रेजोंके शासनकालमें सन् १९३५ (1935) में भारत के भूभाग म्यांमार (बर्मा) को पृथक् किया गया।

3. अंग्रेजोंके शासनकालमें सन् १९४७ (1947) में वर्तमान पाकिस्तान तथा बंगलादेशको भारतसे पृथक् किया गया।

4. सन् १९४७ (1947) में पाक अधिकृत कश्मीर(आज़ाद भारत) को नेहरूजीके शासनकालमें भारतसे पृथक् किया गया।

5. सन् १९५० (1950) में नेहरूजीके शासनकालमें भारत-चीन मैत्रीकी ओटमें चीनने तिब्बतको हड़प लिया।

6. सन् १९५४ (1954) में नेहरूजीके शासनकालमें भारतसरकारने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगलादेश) को पश्चिम बंगालका बेरूबाड़ी क्षेत्र सौंपकर देशको विखंडित किया।

7. सन् १९५८ (1958) में नेहरूजीके शासनकालमें चीनने देशके सीमावर्ती क्षेत्रपर अधिकार कर लिया।

8. सन् १९६२ (1962) में चीनने नेहरूजीके शासनकालमें भारतकी बासठ हजार वर्गमील भूमिपर अधिकार जमा लिया।

9. सन् १९६३ (1963) में नेहरूजीके शासनकालमें भारतसरकारने अंडमान नामक द्वीपसमूहका सर्व नामक द्वीप म्यांमार (बर्मा) को सौंप कर देशको विखंडित किया।

10. सन् १९७२ (1972) में इंदिरागाँधीके शासनकालमें भारतसरकारने कच्चा तीबू द्वीप श्रीलंकाको सौंप कर देशको विखंडित किया।

11. सन् १९८२-८३ (1982-83) में चीनने भारतके अरुणाचलक्षेत्रके भूभागको हड़प लिया।

12. सन् १९९२ (1992) में नरसिंहरावके शासनकालमें भारतसरकारने तीन बीघा भूभाग बंगलादेशको देकर देशका विभाजन किया।

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “राष्ट्रोत्कर्ष-अभियान” पृष्ठ संख्या ८५-८६

भारतकी अखंडता स्वस्थक्रांति की सफलता

रामराज्य (धर्मराज्य)


दशवर्षसहस्त्राणि दशवर्षशतानि च।
अयोध्याधिपतिर्भूत्वा रामो राज्यमकारयत्।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ६१)

श्रीरामने अयोध्याके अधिपति होकर ग्यारह हजार वर्षोंतक राज्य किया।।”
रामराज्य
सन्तुष्टा: सर्वसिद्धार्था निर्भया: स्वैरचारिण:।
नरा: सत्यव्रताश्चासन् रामे राज्यं प्रशासति।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५७)

श्रीरामचन्द्र जब राज्य करते थे उस समय सब मनुष्य सन्तुष्ट, पूर्णकाम, निर्भय, स्वच्छन्द (स्वाधीन) और सत्यव्रती थे।।”

विधवा यस्य विषये नानाथाः काश्चनाभवत्।
सदैवासीत् पितृसमो रामो राज्यं यदन्वशात्।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५२)

“उनके राज्यमें कोई विधवा और अनाथ नहीं हुई। श्रीरामचन्द्रने जबतक राज्यका शासन किया, तब तक वे अपनी प्रजाके लिए सदा ही पिताके समान कृपालु बने रहे।।”
रामराज्य
कालवर्षी च पर्जन्य: सस्यानि समपादयत्।
नित्यं सुभिक्षमेवासीद् रामे राज्यं प्रशासति।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५३)

मेघ समयपर वर्षा करके खेतीको उत्तम ढङ्गसे सम्पन्न करता था अर्थात् उसे विकसित होने, फूलने तथा फलनेका अवसर देता था। रामजीके राज्यशासनकालमें सदा सुकाल ही रहता था, अर्थात् कभी अकाल नहीं पड़ता था।।”

प्राणिनो नाप्सु मज्जन्ति नान्यथा पावकोऽदहत्।
रूजाभयं न तत्रासीद् रामे राज्यं प्रशासति।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५४)

रामजीके राज्यशासनकालमें कभी कोई प्राणी जलमें नहीं डूबते थे, आग अमर्यादितरूपसे कभी किसीको नहीं जलाती थी तथा किसीको रोगका भय नहीं था।”
रामराज्य
आसन् वर्षसहस्त्रिण्यस्तथा वर्षसहस्त्रकाः।
।।अरोगा: सर्वसिद्धार्था रामे राज्यं प्रशासति।।

(महाभारत — शान्तिपर्व २९. ५५)

श्रीरामचन्द्रजी जब राज्यका शासन करते थे, उन दिनों हजार वर्षतक जीनेवाली स्त्रियाँ और सहस्त्रों वर्षतक जीवित रहनेवाले पुरुष थे। किसीको कोई रोग नहीं सताता था, सभीके सारे मनोरथ सिद्ध होते थे।।”

— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या १७०-१७१

धर्मनियन्त्रित शासनतन्त्र


धर्मनियन्त्रित शासनतन्त्र

धर्मनियंत्रित पक्षपातविहीन शोषणविनिर्मुक्त सर्वहितप्रद सनातन शासनतन्त्रकी स्थापना हमारा लक्ष्य है।

‘सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ, और सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाजकी संरचना’ — राजनीतिकी मन्वादि धर्मशास्त्रसम्मत विश्वस्तरपर सर्वसम्मत सार्वभौम परिभाषा है।

अन्योंके हितका ध्यान रखते हुए हिंदुओंके अस्तित्व और आदर्शकी रक्षा, देशकी सुरक्षा और अखंडताके लिए कटिबद्धता हमारा व्रत है।