राजा कालस्य कारणम्
उत्तम राजा कलि, द्वापर तथा त्रेतायुगमें भी कृतयुगका संस्थापक होनेके कारण कालका भी कारण होता है। –
कालो व कारणं राज्ञो राजा वा कालकारणम्।
इति ते संशयो मा भूद् राजा कालस्य कारणम्।।
(महाभारत – शान्तिपर्व ६९. ७९)
“काल राजाका कारण है अथवा राजा कालका, ऐसा संशय तुम्हें नहीं होना चाहिये। यह निश्चित है कि राजा ही कालका कारण होता है।।”
राजा कृतयुगस्रष्टा त्रेताया द्वापरस्य च।
युगस्य च चतुर्थस्य राजा भवति कारणम्।।
(महाभारत – शान्तिपर्व ६९. ९८)
“राजा ही सत्ययुगकी सृष्टि करनेवाला होता है और राजा ही त्रेता, द्वापर, तथा चौथे युग कलिकी भी सृष्टिका कारण है।।”

यद्यपि काल पुरुषार्थचतुष्टयकी सिद्धि तथा सृष्टिसंरचनादिमें हेतु है, अतः वह राजाका भी कारण है ; तथापि कालज्ञ तथा कालका शुभ कार्योंमें प्रयोक्ता और महाकाल अकालपुरुष सच्चिदानन्दस्वरुप सर्वेश्वरके शरणागत एवम् प्रजाके भोगापवर्गकी सिद्धिमें संलग्न शासक दिव्यताके तारतम्यसे सत्ययुग, त्रेता या द्वापरका संस्थापक सिद्ध होता है; जबकि निद्रा – आलस्य – प्रमाद तथा काम – क्रोध – लोभके वशीभूत मूर्च्छित, व्यथित, अराजक और उन्मत्त शासक कलिका संस्थापक सिद्ध होता है।
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या २३०-२३१
कालो व कारणं राज्ञो राजा वा कालकारणम्।
इति ते संशयो मा भूद् राजा कालस्य कारणम्।।
(महाभारत – शान्तिपर्व ६९. ७९)
“काल राजाका कारण है अथवा राजा कालका, ऐसा संशय तुम्हें नहीं होना चाहिये। यह निश्चित है कि राजा ही कालका कारण होता है।।”
राजा कृतयुगस्रष्टा त्रेताया द्वापरस्य च।
युगस्य च चतुर्थस्य राजा भवति कारणम्।।
(महाभारत – शान्तिपर्व ६९. ९८)
“राजा ही सत्ययुगकी सृष्टि करनेवाला होता है और राजा ही त्रेता, द्वापर, तथा चौथे युग कलिकी भी सृष्टिका कारण है।।”

यद्यपि काल पुरुषार्थचतुष्टयकी सिद्धि तथा सृष्टिसंरचनादिमें हेतु है, अतः वह राजाका भी कारण है ; तथापि कालज्ञ तथा कालका शुभ कार्योंमें प्रयोक्ता और महाकाल अकालपुरुष सच्चिदानन्दस्वरुप सर्वेश्वरके शरणागत एवम् प्रजाके भोगापवर्गकी सिद्धिमें संलग्न शासक दिव्यताके तारतम्यसे सत्ययुग, त्रेता या द्वापरका संस्थापक सिद्ध होता है; जबकि निद्रा – आलस्य – प्रमाद तथा काम – क्रोध – लोभके वशीभूत मूर्च्छित, व्यथित, अराजक और उन्मत्त शासक कलिका संस्थापक सिद्ध होता है।
— श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “नीतिनिधि” पृष्ठ संख्या २३०-२३१