श्रीरामानुरोध
भूयो भूयो भाविनो भूमिपाला
नत्वा नत्वा याचते रामचन्द्र:।
सामन्योऽयं धर्मसेतुर्नराणां
काले काले पालनीयो भवद्भि:
(स्कन्दपुराण – धर्मारण्यखण्ड ३४.३८)
“भावी राजाओं ! रामचन्द्र आपको पुन: – पुन:
नमस्कार करके यह याचना करता है
कि मनुष्योंके लिये जो यह वेदादि
शास्त्रसम्मत वर्णाश्रमधर्मके अनुपालन
से क्रमिक उत्कर्षको प्राप्त यम – नियमादिरूप
सामान्य धर्मसेतु है, वह अपने – अपने
समयमें आपके द्वारा अवश्य ही पालनीय है।।”
प्रजातंत्र राजाविहीन होता है
प्रजातंत्र राजाविहीन शासन प्रणाली है, जहाँ राजा केवल नाममात्रका होता है।
राजाके स्थान पर राष्ट्रपति या राज्यपाल कुछ वर्षोंके लिए नियुक्त किए जाते हैं।
पूरी प्रणाली वर्णाश्रमधर्मके स्थान पर व्यक्तिवादपर आधारित होती है।
इस प्रणालीमें क्षात्रधर्मका पालन नहीं होता, सेना वेतनभोगी होती है,
और राष्ट्र का संचालन मन्त्रियों द्वारा किया जाता है। न्यायप्रणाली धर्मानुरूप नहीं होती।
राष्ट्र के संचालन में व्यापार को अधिक महत्व दिया जाता है।
राजतंत्र वेदादिशास्त्रसम्मत शासन प्रणाली है, जो वर्णाश्रमधर्म पर आधारित है।
इसमें व्यक्तिवाद का कोई स्थान नहीं होता। राजा सर्वदा क्षत्रिय वर्ण का ही होता है।
प्रजावर्गको प्रसन्न रखना ही राजाओंका धर्म होता है। सत्यकी रक्षा राजोचित कर्तव्य होता है।
भगवान को शासक मानकर क्षत्रिय राजा उनके प्रतिनिधि के रूप में राजकाज सम्भालते हैं।
उदाहरणत: मेवाड़ राज्य में 1947 तक एकलिंगजी महाराज का शासन
चलता था, और महाराणा एकलिंगजी के प्रतिनिधि के रूप में शासन
करते थे इसीलिए वे स्वयं को ‘एकलिंगजी का दीवान’ मानते थे।
केवल राजतंत्र ही शास्त्रसम्मत है
राजतंत्र में सब वर्णों का समावेश है।
महाभारत के शांतिपर्व में इस तथ्य को उद्भाषित किया गया है कि राजा के मंत्रिमंडल में चार शिक्षाविद् ब्राह्मण हों जो वेदविद्या में विद्वान, निर्भीक, बाहर-भीतर से शुद्ध एवं स्नातक हों। शरीर से बलवान तथा शस्त्रधारी, रक्षा के विशेषज्ञ आठ क्षत्रिय हों। कृषि, गौरक्षा और वाणिज्य के प्रकल्प को क्रियान्वित करने के लिए धन-धान्य से सम्पन्न इक्कीस अर्थशास्त्र के मर्मज्ञ वैश्य हों। सेवा, श्रम, कुटीर उद्योग और नव उद्योग के प्रकल्प को क्रियान्वित करने के लिए पवित्र आचार-विचार वाले तीन विनयशील शूद्र हों। अष्टगुणसम्पन्न पुराणविद्याविशारद एक सूत सांस्कृतिक मंत्री राजा के मंत्रिमंडल में सन्नहित हों। इस प्रकार राजतंत्र में सब वर्णों का समावेश है।
In the Shanti Parva of the Mahabharata, it has been revealed that the king’s cabinet should have four educated Brahmins who are experts in Vedas, fearless, and pure from inside & outside. There should be eight Kshatriyas who are physically strong & armed and experts in defence. Twenty-one Vaishyas who are well endowed with wealth and are experts in economics should be there to implement the projects of agriculture, cow protection & commerce. Three humble Shudras with pure conduct and thoughts should be there to implement the projects of service, labour, & cottage industry. One Sut, a cultural minister who is expert in Purana Vidya, endowed with eight qualities, should be present in the King’s cabinet of ministers. Thus, every Varna gets a fair share in a Monarchy.