प्रजातंत्र नहीं राजतंत्र
                               
                                   क्षत्रिय राजा
                                    धर्म

इतिहास साक्षी है कि महान नेता और योद्धा अपनी वीरता के बल पर ही साम्राज्य स्थापित कर पाए हैं। चाहे वह चाणक्य की नीतियाँ हों या महाराणा प्रताप या राणा सांगा का युद्धकौशल, सभी ने “वीर भोग्या वसुंधरा" के मूल सिद्धांत को अपनाया। यह सिद्धांत नेतृत्व की गुणवत्ता को भी प्रदर्शित करता है, जहाँ एक योद्धा के रूप में वीरता के दृष्टिकोण का होना अनिवार्य है।

महाराणा

मनुस्मृति वैदिक संविधान है।

                       

व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का लौकिक व परलौकिक विकास केवल ब्राह्मणों के मार्गदर्शन से ही सम्भव है।

Brahmin's guidance is beneficial for everyone. Therefore, people of other Varnas should follow the rituals as told by the Brahmin and not do them as per their own wishes.

केवल क्षत्रियों को ही शासन का अधिकार है।

If Kshatriya Dharma is not established in a country, then everyone will face disappointment in their efforts to obtain objects they desire in their heart/mind.

वैश्य कृषि, गौरक्षा और वाणिज्य के अधिकारी हैं।

Vaisya's should do charity, study, sacrifice and collect wealth only through holy means. The responsibility of rearing animals was given by Prajapati to the Vaisya.

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कुटीर और नव उद्योग के प्रकल्पों के अधिकारी शूद्र हैं।

In Varna Vyavastha, Shudras have complete access to all money earning jobs and professions.



वर्ण व्यवस्था भगवान की देन है।


राजतंत्र में सब वर्णों का समावेश है।

महाभारत के शांतिपर्व में इस तथ्य को उद्भाषित किया गया है कि राजा के मंत्रिमंडल में चार शिक्षाविद् ब्राह्मण हों जो वेदविद्या में विद्वान, निर्भीक, बाहर-भीतर से शुद्ध एवं स्नातक हों। शरीर से बलवान तथा शस्त्रधारी, रक्षा के विशेषज्ञ आठ क्षत्रिय हों। कृषि, गौरक्षा और वाणिज्य के प्रकल्प को क्रियान्वित करने के लिए धन-धान्य से सम्पन्न इक्कीस अर्थशास्त्र के मर्मज्ञ वैश्य हों। सेवा, श्रम, कुटीर उद्योग और नव उद्योग के प्रकल्प को क्रियान्वित करने के लिए पवित्र आचार-विचार वाले तीन विनयशील शूद्र हों। अष्टगुणसम्पन्न पुराणविद्याविशारद एक सूत सांस्कृतिक मंत्री राजा के मंत्रिमंडल में सन्नहित हों। इस प्रकार राजतंत्र में सब वर्णों का समावेश है।


In the Shanti Parva of the Mahabharata, it has been revealed that the king's cabinet should have four educated Brahmins who are experts in Vedas, fearless, and pure from inside & outside. There should be eight Kshatriyas who are physically strong & armed and experts in defence. Twenty-one Vaishyas who are well endowed with wealth and are experts in economics should be there to implement the projects of agriculture, cow protection & commerce. Three humble Shudras with pure conduct and thoughts should be there to implement the projects of service, labour, & cottage industry. One Sut, a cultural minister who is expert in Purana Vidya, endowed with eight qualities, should be present in the King's cabinet of ministers. Thus, every Varna gets a fair share in a Monarchy.

-- श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती महाराज।

सनातनवर्णव्यवस्थाकी उपयोगिता

शिक्षा, न्याय, रक्षा, अर्थ, सेवा, स्वच्छता, तथा वस्तुनिर्माणकी व्यवस्थाको समाज में संतुलित रखनेकी स्वस्थविधा सनातन वर्णव्यवस्था है। उसकी निंदा विद्वेष या अविवेकमूलक ही है। व्यवहारसम्पादनके लिए अपेक्षित शिक्षक, रक्षकादिकी वैकल्पिक संरचनामें समय तथा सम्पत्तिका अपव्यय, विविध विभागों में व्यक्तिकी अपेक्षित संख्यामें असंतुलन तथा संयुक्तपरिवारका उच्छेद सुनिश्चित है। संयुक्तपरिवारके विलोप से सनातन कुलधर्म, जातिधर्म, कुलगुरु, कुलदेव, कुलदेवी, कुलाचारादिका विलोप सुनिश्चित है। ऐसी स्थितिमें मनुष्य भोजन करने और संतान उत्पन्न करनेका यंत्रमात्र अवशिष्ट रहता है। परम्पराप्राप्त वर्णोचित संस्कार का आधान सर्वथा असम्भव है। श्रमिकों, किसानोंका शोषण तथा शिक्षकों, न्यायाधीशों, सैनिकोंको वेतनभोगी बनाकर शासन करनेवाले व्यापारियोंका साम्राज्य, शोषितवर्गका विद्रोह तथा विश्वयुद्धका, तद्वत् विविध संक्रामक रोगोंका विश्वस्तरपर तांडव नृत्य अनिवार्य है। अत एव मोक्ष ही नहीं, अपितु समुचित और सन्तुलित भोगके लिए भी सनातनधर्मका परिपालन ही कर्त्तव्य है।

श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठाधीश्वर-श्रीमज्जगद्गुरु-शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक "सनातनवर्णव्यवस्थाकी उपयोगिता" पृष्ठ संख्या २२

हिंदूराष्ट्र क्यों ?

जैसे गर्मी की ऋतु में गर्मी के निवारण तथा शीत ऋतु में गर्मी के सम्पादन के लिए प्रयत्न आवश्यक है। इसी प्रकार कलयुग में भी धर्म की रक्षार्थ प्रयत्न करना आवश्यक ही है।

स्वामी करपात्री जी महाराज
धर्म सम्राट

आप दस-बीस समस्या बतायेंगे, मुझे एक हजार समस्या का परिज्ञान है। समाधान एक ही है जब तक हमको वेदादि शास्त्रसम्मत शासनतंत्र प्राप्त नहीं होता तब तक हम अपने प्रशस्त मान बिंदुओं की रक्षा नहीं कर सकते।

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी
जगतगुरु शंकराचार्य, पूरी पीठ


Modern India runs on Buddha’s ideals of peace, detachment and non-alignment. International politics however works differently. The world respects power, not passivity. Bhagwan Krishna taught us Dharma and importance of Decisive Action. Buddha taught Withdrawal. As a country, we chose the wrong path. And it’s costing us both globally and culturally. If we don’t shift to Bhagwan Krishna’s vision soon, it’ll be too late.

           

वर्तमान परिस्थिति उपेक्षा करने योग्य नहीं है। रावण माना कि दुष्ट था, लेकिन उसके शासन पर जब आँच आई, तो सोए हुए कुम्भकरण को भी जगाना ही पड़ा। इससे सिद्ध होता है, चाहे कोई निर्विकल्प समाधि में अवस्थित हो, चाहे वस्तुतः अर्थ और काम में लिप्त हो, चाहे कोई निद्रा का आस्वादन ले रहा हो, चाहे कोई निभृत निकुंज का चिंतन कर रहा हो - इन सब पर भी आघात पड़ सकता है, जब राष्ट्र में विप्लव की परिस्थिति आती है। इसलिए केवल धन और मान के पीछे ना पड़ के, देश की परिस्थिति को समझकर, और साधु संतों का ब्राह्मणों का, यहाँ आए हुए प्रत्येक व्यक्ति का पवित्र दायित्व होता कि अपने प्रति कर्तव्य का पालन करें और राष्ट्र को उचित मार्गदर्शन प्रदान करें; नहीं तो देश की स्थिति बहुत विषम होती जा रही है, इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

The present situation doesn't deserve to be ignored. Even though Ravana was evil, when his rule was in danger, even deep-sleeping Kumbhakaran had to be awakened. This shows that whether someone is in Nirvikalp Samadhi, or is actually involved in earning wealth & seeking pleasure, or is contemplating on Divine Leela, or is just enjoying plain sleep - all of them can also be affected when a troublesome situation arises in the nation. Therefore, instead of running after money and respect, every person who has come here - sages, saints, Brahmins - it is their sacred duty to understand the situation and provide proper guidance to the nation; otherwise the situation of the nation will continue to deteriorate, which shouldn't be ignored.

-- श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती महाभाग, सन् 1986 का वक्तव्य

श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती महाराज